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________________ कल्याण-यात्रा | २३ भंते ! फाणित गुड़ (गुड़ की राब) में मधुर रस है या कट रस ? गौतम ! उसमें पांचों ही रस हैं। भंते ! यह कैसे? गौतम ! व्यवहारदृष्टि से गुड़ में एक मधुर रस कहा जाता है, किंतु निश्चयदृष्टि से पांचों ही रस उसमें विद्यमान हैं । इसी तरह उसमें पांचों वर्ण, दो गंध एवं बाठ स्पर्श विद्यमान रहते हैं।' जयंती के प्रश्नोत्तर भी अपेक्षावाद के प्रयोग हैं, जो पीछे दिये गये हैं। एक समय में दो किया भगवान महावीर एक बार राजगृह के उद्यान में विराजमान थे। गणधर गौतम ने पुद्गल, परमाणु, चलमान, चलित आदि विषयों पर भगवान् से अनेक प्रश्न पूछे । तदनन्तर गौतम ने पूछा-भंते ! कुछ लोग कहते हैं-जीव एक समय में ईर्यापथिकी और सांपरायिकी दोनों क्रियाएं करता है, क्या यह ठीक है ? भगवान् गौतम ! नहीं ! यह कथन युक्तियुक्त नहीं है । जीव एक समय में एक ही क्रिया कर सकता है। जिस समय ईपिथिकी क्रिया करता है, सांपरायिकी क्रिया नहीं करता, जब सांपरायिकी क्रिया करता है, उस समय ईपिथिकी क्रिया नहीं करता। श्रुत और शील मते ! कुछ लोग कहते हैं, शील (सदाचार) श्रेष्ठ है और कुछ दूसरे कहते हैं, श्रुत (ज्ञान) श्रेष्ठ है और तीसरे कहते हैं, शील और अत प्रत्येक श्रेष्ट है । भगवन् ! यह कैसे? गौतम ! यह कथन यथार्थ नहीं है। भंते ! कैसे? गौतम ! शील और श्रुत दोनों का समन्वय होने पर ही जीवन में संपूर्ण श्रेष्ठता आती है। जो पुरुष शीलवान है (सदाचारी है, पर श्रुतवान (ज्ञानी) नहीं है, वह धर्म का देश-आराधक (धर्म की आशिक आराधना करने वाला) है। भगवती सूत्र १६ २दीमा का बड़तीसवाँ वर्ष, वि.पू. ४७५-४७४ । भगवती सूत्र, शतक १, ३.१०
SR No.010569
Book TitleTirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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