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________________ २३४ | वीर्षकर महावीर जो पुरुष शीलवान नहीं पर अतवान है, वह धर्म का देश-विराधक है। जो शीलवान एव श्रुतवान है, वह धर्म का पूर्ण माराधक है। जो शील एवं श्रुत दोनों से हीन है, वह धर्म का पूर्ण विराधक है।' सुव्रत और दुर्बत एक बार इन्द्रभूति ने भगवान् से पूछा भंते ! कोई मनुष्य प्राणी की हिंसा का त्याग करता है तो उसका वह व्रत 'सुव्रत' कहलायेगा या 'दुर्वत' ? गौतम ! वह सुव्रत भी हो सकता है और दुर्वत भी। मते ! यह कैसे? गौतम ! उक्त प्रकार का व्रत लेने वाला यदि जीव-अजीव के परिज्ञान से रहित है तो उसका व्रत 'दुव्रत' कहलायेगा । तथा जीव-अजीव के परिज्ञान से युक्त होकर कोई हिंसा का त्याग करता है तो उसका व्रत 'सुव्रत' कहलायेगा। (व्रत भी तभी सुव्रत होता है, जब उसके साथ उस विषय का ज्ञान हो। बज्ञान-पूर्ण व्रत वास्तव में कोई व्रत नहीं है।) सत्संग से सिद्धि राजगृह में एक बार भगवान महावीर से गणधर इन्द्रभूति ने पूछा-- "भंते ! श्रमणों के सत्संग का क्या फल होता है ?" "यथार्थ सत्य सुनने को मिलता है।" "भंते ! उससे क्या फल होता है ?" "वस्तुतत्त्व का सम्यक ज्ञान होता है।" "भंते ! उससे क्या फल होता है ?" "वस्तुतत्त्व का विश्लेषणपूर्वक विज्ञान (स्पष्ट परिवोध) होता है।" "भंते ! उससे क्या फल होता है ?" "अनात्मभाव-बहिर्भाव से आत्मभाव का-अन्तर्भाव का पृथक्करण होता है।" "भंते ! उससे क्या फल होता है?' "संयम होता है।" १ प्रश्नोत्तर राजगृह में : दीक्षा का तेतीसवां वर्ष, पि. पू. ४८० । भगवती सून, शतक ८ । उ०१०। २ भगवती सूत्र, शतक ३२
SR No.010569
Book TitleTirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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