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________________ २३२ | तीर्थकर महावीर गौतम-भंते ! लोक-स्थिति कितनी प्रकार की है? भगवान गौतम ! लोक-स्थिति माठ प्रकार की है-(सबसे नीचे आकाश है) आकाश पर हवा प्रतिष्ठित है, हवा पर समुद्र, समुद्र पर पृथ्वी, पृथ्वी पर प्रस-स्थावर प्राणी (यह चराचर जगत), उन जीवों (स-स्थावर) पर अजीव प्रतिष्ठित है, कर्मों पर जीव प्रतिष्ठित है, अजीव, जीव संग्रहीत है, जीव कम-संग्रहीत है।' गौतम-भंते ! परमाणु शाश्वत है या अशाश्वत ? भगवान् गौतम ! परमाणु द्रव्यरूप में शाश्वत है, और पर्यायरूप में अशाश्वत है। काल-व्यवस्था भगवान् महावीर एक बार राजगृह के गुणशिलक उद्यान में ठहरे हुए थे। इन्द्रभूति ने काल के विषय में भगवान से लंबी चर्चा की। भंते ! एक मुहूर्त में कितने उच्छ्वास होते हैं ? गौतम ! एक मुहूर्त में ३७७३ श्वासोच्छ्वास होते हैं। जैसे असंख्य समयों का समुदाय एक आवलिका, संख्यात आवलिका का एक उच्छवास और उतनी ही मावलिका का एक निश्वास । एक स्वस्थ, सशक्त पुरुष एक मुहूर्त में ३७७३ श्वासोच्छ्वास लेता है। इसीप्रकार तीस मुहूर्त का एक अहोरात्र (दिन-रात), पन्द्रह अहोरात्र का एक पक्ष । इसीप्रकार गणना को आगे बढ़ाते हुए शीर्षप्रहेलिका, और फिर सागरोपम, अवसर्पिणी-उत्सपिणी एवं बीस कोटाकोटी सागरोपम का एक कालचक्र होता है। वचन-व्यवस्था भगवान महावीर अनेकांतवादी थे । अनंतधर्मात्मक वस्तु के विभिन्न धर्मों का परिज्ञान रखते हुए अपेक्षापूर्वक वचन बोलना-यह उनका अपेक्षावाद (विभज्यवाद) या स्याद्वाद कहलाता है। छोटी-से-छोटी वस्तु का स्वरूप भी आपेक्षिक कथन द्वारा प्रकट किया जाता है । एक प्रसंग है । गौतम ने एक बार पूछा १ भगवती सूत्र, शतक १. उ. ६ २ भगवती सूत्र, शतक १४४ ३ दीक्षा का सोलहवां वर्ष वि.पू. ४९७-४९६ ४ भगवती सूत्र उ..
SR No.010569
Book TitleTirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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