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________________ २१६ | तीर्थकर महावीर तेजोलेश्या जैसे ही लौटकर गौशालक के शरीर में प्रविष्ट हुई, वह आकुल-व्याकुल हो उठा, उसका रोम-रोम जलने लगा। अन्तर् की तपन को बाहर फेंकते हुए वह बोला-काश्यप ! मेरे तपस्तेज से तुम छह महीने के अंदर छप्रस्थदशा में ही मृत्यु के ग्रास बन जाओगे।" गौशालक की मूर्खता पर महावीर को तरस आगई । अपने ही शस्त्र से स्वयं पायल होकर तड़फते हुए गौशालक के इन अहंकारपूर्ण शब्दों में जैसे उसकी मृत्यु की अंतिम चेतावनी थी । महावीर ने स्थिति को स्पष्ट करते हुए कहा-"गौशालक ! अब भी तुम अंधकार में भटक रहे हो? तुम देख चुके हो, तुम्हारी तेजोलेश्या मुझ पर कुछ भी असर नहीं कर पाई है, प्रत्युत तुम अपनी ही तेजोज्वाला से दग्ध होकर तड़फ रहे हो । अब भी तुम समझो। सात दिन के भीतर तो तुम अपनी जीवनलीला समाप्त कर ही जाओगे""""क्या ही अच्छा हो कि अपने घोर दुष्कृत्य पर पश्चात्ताप कर अपना अंतिम जीवन सुधार लो।" महावीर अब भी गोशालक के कल्याण की कामना कर रहे थे। पर गौशालक अपनी करतूतों से बाज नहीं आ रहा था। वह महावीर को अब भी गालियां दे रहा था। उसकी तेजोलेश्या क्षीण हो चुकी थी। वह विषदन्त उखड़े सर्प की तरह, जली हईपास की तरह निर्वीर्य एवं निस्तेज स्थिति में महावीर के सामने कुछ क्षण खड़ा रहा। आखिर जैसे-जैसे तेजोलेश्या से वह भीतर-ही- भीतर दग्ध होने लगा, अकुलाकर चीख उठा-'हाय मरा !' और वह लड़खड़ाता हुआ दयनीय स्थिति में अपने भावास पर आया। महावीर और गौशालक के इस विवाद के समाचार श्रावस्ती के घर-घर में फैल गये । लोग बातें करने लगे-"आज कोष्ठक उद्यान में दो जिनों में झगड़ा हो गया। एक कहता है तू पहले मरेगा, दूसरा कहता है तू। इनमें कौन सत्यवादी है, कौन मिथ्यावादी ? पता नहीं।" बनता की इस चर्चा पर कुछ समझदार लोग टिप्पणी करते हुए कहते"गौशालक पाखण्डी है, वह पहले तो सिंह की तरह गर्जता रहा किंतु जब महावीर को अपनी तेजोलेश्या से भस्म नहीं कर सका और उलटे अपनी तेजोलेश्या से स्वयं ही दग्ध हो गया तो निस्तेज, निष्प्रभ होकर चीखता-चिल्लाता चला गया, इससे स्पष्ट होगया, महावीर सत्यवादी हैं, जिन है, गौशालक विद्रोही है । पाखंडी है।" ___ शरीर में तेजोलेश्या के प्रकोप से गौणालक असह्य पीड़ा का अनुभव करने लगा । उसे शांत करने के लिए वह माम की गुठली हाथ में लेकर बार-बार चूसता, बार-बार मदिरापान करता, शरीर पर मिट्टी मिला जल सींचता । कभी उन्मत्त
SR No.010569
Book TitleTirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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