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________________ कल्याण-यात्रा | २०१ हुये थे। प्रतिदिन उनकी धर्मदेशना होती थी, हजारों-हजार नर-नारी सुनने को बाते हैं। एकदिन धर्मदेशना के बाद पापित्य-श्रमण गांगेय भगवान् की धर्मसभा में बाये और दूर खड़े रहकर ही उन्होंने नरक, असुरकुमार, दीन्द्रिय आदि जीव तथा 'सत्-असत्' आदि के सम्बन्ध में काफी विस्तार से प्रश्न पूछे । सभी प्रश्नों का ययोचित समाधान मिलने पर गांगेय अनगार को भगवान् की सर्वशता में विश्वास हो गया। वे तुरन्त विनयपूर्वक वन्दना कर निकट आये और भगवान की पंच महाप्रतिक धर्मपरम्परा में प्रविष्ट होने की स्वीकृति मांगी । भगवान् की अनुमति प्राप्त कर गांगेय अनगार उनके धर्मसंघ में सम्मिलित हो गये। गांगेय अनगार के तत्त्वज्ञान से परिपूर्ण विविध प्रश्नोत्तर व स्वर्ग नरक-सम्बन्धी भगजाल जैन तत्त्वज्ञान में प्रमुख स्थान रखते हैं। उखकपेढाल द्वारा संघ-प्रवेश भगवान महावीर के संघ में पार्श्व-परम्परा के जो श्रमण सम्मिलित हुए उनमें सबसे आखिरी नाम उदकपेढाल का है। भगवान महावीर को धर्मसंघ स्थापित किये लगभग २२ वर्ष बीत गये थे। इस दीर्घकाल में केशीकुमार जैसे प्रभावशाली श्रमण, गांगेय जैसे तत्त्वज्ञ अनगार तथा अनेकों स्थविर भगवान् के संघ में प्रविष्ट हो चुके थे, पर लगता है कुछ पार्श्वसन्तानीय श्रमण अब भी इस धर्मसंघ से दूर थे। जो एक-एक करके संघ में मम्मिलित हो रहे थे। इन्हीं में पेढालपुत्र उदक का नाम है। भगवान् महावीर एक बार नालंदा के हस्तियाय उद्यान में ठहरे थे । वहाँ पर पाश्र्वापत्य श्रमण पेढालपुत्र उदक की भेंट इन्द्रभूति गौतम के साथ हो गई। उदक ने गौतम से कहा- "गौतम ! मेरे मन में कुछ शंकाएं हैं। क्या आप मेरे प्रश्नों का उचित उत्तर देंगे ?" "पूछिए !"-गौतम ने कहा। इस पर उदक ने गौतम से बड़े लंबे-चौड़े प्रश्न पूछे। गौतम ने शांति के साथ सबका उत्तर दिया। दोनों की चर्चा चल ही रही थी कि कुछ अन्य पापित्यस्थविर भी वहां आ गये । वे भी दोनों की चर्चा सुनने लगे। अनेक प्रश्नोत्तरों के १ दीक्षा का बत्तीसवां वर्ष । वि. पू. ४६१.४८० । २ विस्तार के लिए देखें-भगवती सूत्र शतक ९ । उ०३२। ३ यह उचान नालंदा के प्रमुख श्रमणोपासक 'लेव' का अपना निजी उचान पा। बीमा का ३ग्यो वर्ष । वि.पृ. ४७८।
SR No.010569
Book TitleTirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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