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________________ २०० | वीपंकर महावीर गौतम-"विज्ञान से-(विशिष्ट मान से) अच्छी प्रकार जानकर ही धर्म के साधनभूत उपकरण आदि की अनुमति दी गई है। वास्तव में नाना प्रकार के उपकरण आदि की परिकल्पना लोक-प्रतीति के लिये है। संयम-यात्रा का निर्वाह होता रहे और "मैं साधु हूं" इसकी अनुभूति बनी रहे, इसलिये ही लोक में लिंग-वेष का प्रयोजन है।" गौतम के स्पष्ट और सन्तुलित भाव-भाषायुक्त उत्तरों से केशीकुमार की जिज्ञासा शांत हो गई। उन्होंने साधना, धर्म एवं आत्मविषयक अनेक सुन्दर प्रश्न गौतम से पूछे और गौतम ने उनका प्रज्ञा-पुरस्सर समाधान किया । प्रश्नोत्तरों का पूरा वर्णन उत्तराध्ययन सूत्र (अध्ययन २३) में आज भी सुरक्षित है। केशी-गौतम के प्रश्नोत्तरों में भगवान महावीर की अध्यात्म-दृष्टि जितनी सुन्दर रूप में स्पष्ट हुई है, उतनी ही स्पष्टता के साथ धर्म एवं वेष के सम्बन्ध में उनकी क्रांतिकारी भावना भी झलक रही है कि धर्म का सम्बन्ध वात्मा के साथ है, वेष का प्रयोजन सिर्फ बाह्य-प्रतीति- सामाजिक मर्यादा तक है । केशीकुमार अपनी जिज्ञासा और शंकाबों का समाधान पाकर अत्यंत प्रसन्न हुए। श्रद्धा और भावना के साथ उन्होंने गौतम को वन्दना की और भगवान् महावीर के धर्मसंघ में सम्मिलित होने की भावना प्रकट की। गौतम ने उन्हें भगवान महावीर के संघ में सम्मिलित किया।' पार्श्व-परम्परा का यह ऐतिहासिक सम्मिलन नियन्य-परम्परा के अभ्युदय, उत्कर्ष एवं समन्वयप्रधान हष्टि के विस्तार में बड़ा ही उपयोगी सिद्ध हुआ। अनगार गांगेय का समाधान केशीकुमार श्रमण जब महावीर के धर्मसंघ में सम्मिलित हो गये तो एक प्रकार से पार्श्वनाथ-परम्परा के मुख्य प्रभावशाली एवं विद्वान श्रमणों का समुदाय एकीकरण के सूत्र में बंध गया। इससे अन्य तीथिकों में भी श्रमण-परम्परा का गौरव एवं सम्मान बढ़ा । फिर भी कुछ तत्त्वा तथा तपस्वी पापित्य स्थविर अभी भी भगवान महावीर के धर्मसंघ से पृथक् थे तथा वे भगवान् की सर्वशता को सन्देहभरी दृष्टि से देखते थे । तथापि एक मुख्य बात थी कि उनमें जड-आग्रह नहीं था, सिर्फ निकट आने की देर थी। एक बार भगवान महावीर वाणिज्यग्राम के चुतिपलाश उद्यान में ठहरे १ दीक्षा का बहाईसवां वर्ष । वि. पू. ४८५.४१४ ।
SR No.010569
Book TitleTirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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