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________________ कल्याण-यात्रा १९५ रणभेरियों के बीच शांति का जयघोष सुनाते हुए वे कौशाम्बी के बाहर चन्द्रावतरण चैत्य में आकर ठहरे ।' मृगावती को भगवान् के आगमन की सूचना मिली। उसने मंत्रिमंडल की सम्मति ली-"द्वार खोलने चाहिए कि नहीं ?" इस विकट स्थिति में सभी ने कहा-"दार खुलते ही शत्रुसेना नगर में घुसकर लूट मचा देगी, किसी भी स्थिति में द्वार नहीं खुलने चाहिए।" रानी मृगावती ने कहा-"शांति का देवता जब हमारे द्वार पर आ गया है तब हम हतभागी क्या उसके स्वागत के लिए द्वार भी न खोलें ? भगवान महावीर की उपस्थिति में हमें कुछ भी भय नहीं। मुझे अटल विश्वास है, यह विपत्ति भी टल जायेगी और भगवान् की धर्मनीति रणनीति को नया मोड़ दे देगी।" . रानी का विश्वास जीता । शत्रुसेना से घिरी कौशाम्बी के द्वार खुल गये । महारानी अपने समस्त राजपरिवार के साथ भगवान महावीर के दर्शन करने गई । उघर चंडप्रद्योत एवं उसकी अंगारवती आदि रानियां भी भगवान् की धर्म-देशना सुनने आई । भगवान् महावीर ने अत्यंत प्रेरक और हृदयवेधी उपदेश दिया। चंड प्रद्योत का हृदय गद्गद हो गया । उसी समय समयज्ञा रानी मृगावती भगवान् की धर्मसभा में खड़ी हुई और प्रार्थना करने लगी-"भगवन् ! मैं महाराज प्रद्योत (चंडप्रद्योत) की आज्ञा लेकर आपके पास दीक्षा लेना चाहती हूं। मेरा पुत्र उदयन अभी बालक है, इसके संरक्षण की जिम्मेदारी महाराज प्रद्योत स्वीकार करेंगे, ऐसा मुझे विश्वास है।" और रानी ने उदयन को प्रद्योत की गोदी में बिठा दिया। वातावरण बदल गया। चंडप्रद्योत को उदयन का अभिभावकत्व स्वीकार करना पड़ा । आक्रांता अभिभावक बन गया। मृगावती के साथ ही चंडप्रद्योत की आठ रानियों ने भी प्रव्रज्या ग्रहण की। रणभूमि तपोभूमि बन गई। युद्धभेरियों के बदले शांति व त्याग के जयघोष गूंजने लगे। भगवान महावीर ने भारत की राजनीति को शांति की दिशा में एक नया मोड़ दे दिया। पार्श्वनाथ-परम्परा का सम्मिलन भगवान महावीर सहज प्रज्ञा के पक्षधर थे, परम्परा के नहीं। सत्य का निर्णय किसी शास्त्र या परम्परा के आधार पर नहीं, किन्तु अपनी आत्म-साक्षी से १दीक्षा का २० वा वर्ष । वि. पू. ४६३-४६२ २ बावश्यक टीका पन ६४.६७
SR No.010569
Book TitleTirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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