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________________ . ..७७ चतुर्थ सर्ग : किशोर वय सचमुच मुझको ऐसा लगता, इनसे शिक्षक भी शिक्षा लें ॥' वे अध्ययन करते और खूब, नित नूतन खेल रचाते हैं। निज जोवन को बहुमुखी सौम्य, वे इस विधि सरस बनाते हैं । इस जीवन की वे नव बय में, हैं सत्य वचन बोलते सदा । अस्तेय पालते पूर्णतया; करते हिंसा किञ्चित न कदा ॥ वे ब्रह्मचर्य से रहते हैं, विषयों में जाती नहीं दृष्टि । परिमाण परिग्रह में उनके, सज्जीवन को आदर्श सृष्टि । इस सदाचरण परिणाम रूप. उनमें अनन्त दृढ़ता सु-धर्य । बढ़ रहा निरन्तर दिन प्रति दिन, उनमें साहस बल अमित शौर्य । उनके साधारण कृत्यों में, है वीर-वृत्ति दिखती सदैव ।। पुरुणर्थ हेतु उद्यमी सदा, उनका आवर्श न रहा देव ॥
SR No.010568
Book TitleTirthankar Bhagwan Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendra Prasad Jain
PublisherAkhil Vishwa Jain Mission
Publication Year1965
Total Pages219
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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