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________________ तोर्थङ्कर भगवान महावीर जब लौटे घर को वर्तमान, . । मां-पिता, सभी को बच्चों ने। बतलाया 'सन्मति' नाम रखा, जब खेल रहे वे युग मुनि ने ॥ सुन यह घटना सब मुदित हुए. । माँ त्रिशलाका मृदु मुख दमका । कुछ स्वाभिमान की रेखा से, यो नृप-मुख-मण्डल भी चमका ॥ जब वद्ध मान के शिक्षक ने, .. : इस शुभ घटना को था जाना। हर्षातिरेक स्वाभाविक ही, मन-मोद उन्होंने था माना ॥ बोले सहसा-'इस "बालक का, . ''मैं नाम यही तो सोच रहा। जो अभिनव मैंने बतलाया, " वह उन्हें सदा ही ज्ञात रहा ॥ जब कभी कहीं मैं भूला कुछ, - · इनको लख शीघ्र या झाया। इनको सु-प्रज्ञ मुद्रा ऐसी, मैंने भी यह अनुभव पायां ॥ यह स्वयम् प्रन-से लगते, हैं, . इनको कोई क्या शिक्षा दे !
SR No.010568
Book TitleTirthankar Bhagwan Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendra Prasad Jain
PublisherAkhil Vishwa Jain Mission
Publication Year1965
Total Pages219
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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