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________________ पंचम सर्ग : तरुणाई एवं विराग परत परिवर्तन सभी के, शोश पर चुप नाचता है। कहाँ हैं वे राम लक्ष्मण, सती सीता-सी शिरोमणि । वीर योद्धा, चक्रवर्ती, हैं कहीं उनकी मुकुट-मणि ॥ काल के ही गाल में है, भाल जीवन का हमारा । तुहिन-कण-सा यह अथिर है, रत्न जोवन का दुलारा ॥ प्रतः निश्चित मृत्यु मुझको, सब तरफ दिखला रही है। हैं न इससे शरण जग में, विश्व-गति यह गा रही है। पुण्य का सम्बल मिला तो, शत्रु भी बन मित्र जाते । पाप का आया उदय तो, मित्रजन बन शत्रु जाते ॥ इस तरह प्रशरण जगत सब, शरण बस प्ररहन्त स्वामी । क्योंकि मरना जीतने का, मार्ग बतलाते प्रकामी ॥
SR No.010568
Book TitleTirthankar Bhagwan Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendra Prasad Jain
PublisherAkhil Vishwa Jain Mission
Publication Year1965
Total Pages219
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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