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तीर्थकर भगवान महावीर है एक दिवस की बात कि जब, गज हुआ एक प्रति मदोन्मत्त । झञ्झा -सा भगता इधर-उधर,
स्वच्छन्द हुआ मद में प्रमत्त ॥ वह लौह-सांकलें तोड़-ताड़, भागा था हाथीखाने से ।
ज्यों काल मूर्त ही दौड रहा, .. गज मिस उन्मुक्त हुन्मा जैसे ॥ हस्ती-पग-तल मरते अगणित, जन जो भी पथ पर आ जाते। पर असह्य वेदना से वे सब,
तज रहे प्राण थे चिल्लाते ॥ थे सभो महावत चकाए, वश कर न सके गज मतवाला। हिम्मत परास्त थी हो जातो,
देखते जमी हाथी काला। गण्डस्थल से मद चूता था, चिधाड़ रहा घन-गर्जन सा । अतिशय विशाल तर तोड़ रहा,
वह महा भयानक राक्षस-सा ॥ पर महाबीर ने जाना नब,
इस उन्मरहाबो का वृतान्त ।