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गया या नहीं- इसने मेरो सुसुप्त भिलाषा को जागृत कर दिया और प्रस्तुत ग्रन्थ की रचना होगई जिसके लिए गुस जो का प्राभारी है।
यपि मैंने दिगम्बर व श्वेताम्बर दोनों प्रम्नायों की बीर जीवन विषयक घटनामों का समन्वय करने की चेष्टा की तथापि मैंने भगवान को कुमार तीर्थकर या बाल-ब्रह्मचारी ही माना है । इसके पीछे मेरे पू० पिता जी (श्री कामता प्रसाद जी द्वारा प्रणीत 'भगवान महावीर' पुस्तक का 'युवावस्था और गृहस्थ जीवन' प्रध्याय की छाप है । मुझे भ० महावीर का यह बाल-ब्रह्मचारी स्वरूप ही सदेव से प्रिय व स्पृहणीय रहा हैं। हो सकता है कि बाल्यकाल पोर तपःकाल की घटनामों के क्रम में या और कहीं मेरे लिखने में कुछ हेर-फेर हो गया हो, लेकिन मैंने प्रायः सभी प्रमुख घटनामों के समावेश करने की चेष्टा की है। सम्मव है कोई प्रमुख बातें रह गई हों जिनके प्रति मेरी दृष्टि हो न गई हो । बहुत सावधानी बरतने पर यह भी हो सकता है कि प्रशानवश कोई अनुचित बात लिख गई हो । इन सब त्रुटियों के लिए मैं अपने सहृदय पाठकों से क्षमा चाहेगा तथा उनके सूचित करने पर वे त्रुटि यां अगले संस्करण में दूर करने का प्रयल करूंगा । अन्त में में अखिल विश्व जैन मिशन का मामार मानता हूं जिसके द्वारा प्रस्तुत रचना प्रकाश में पा रही है । मेरी मा० अग्रजा श्रीमती सरोजनो देवी जैन ने भी इस पुस्तक की रूप-योजना में सहयोग दिया है उसके लिए में उनको भुला नहीं सकता । शात या प्रज्ञात रूप में जिन महानुभावों या जिन स्रोतों से मुझे इस पुस्तक के निर्माण में योग मिना उन सबका मैं प्राभार मानता है।
समस्त शुभ कामनामों के साप । विनीत्बीर जयन्ती
औरत १९५६