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पुटे
252
254
255
256
256
262
262
263
263
265
265
268
279
281
281
पङ्क्तौ
8
19
6
14
20
21
23
18
19
13
14
19
1
1
3
1
1
289
295
299
301
317
318
321
321
321
321
323
1
323
15
323 21
14
22
13
17
3
5
6
12
अशुद्धम्
बोध
चाऽध्य
भद
पार
स्याप्यप
ध्य स्वर्थ
स्पराव
तत्याती
हितग्र
विषत्वं
शास्त्रवि
स्तिर
हुस्वोके
योपाद
हुरेके
त्योपाद
दिबिष
प्रदान
संग
ततिस्वे
स्तुनो
कवच
सगृ
नाह
उक्तात
तथा
74
हरि
भावान्
शुद्धम्
बाध
जोऽध्य
भेद
परि
स्यापि प
ध्यर्थ
स्परवि
तस्याती
ग्रि
विषयस्वं
शास्त्रावि
स्थिर
हुत्वोके
योपपाद
हुरेके
स्वोपपाद
दिविष
प्रधान
सङ्ग
तीतस्ये
स्तुनोः
adr
संगृ
न हि
तोत
तदा
द्वारि
भाववान्
WD 863-GBPM-750-28-2-56,