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________________ श्रीः संपुटेऽस्मिन् सर्वार्थसिद्धयानन्ददायिन्योपात्तानां प्रमाणानामकारादिक्रमेण सूचनी उपात्तप्रमाणानि पु. सं. पति स.. अक्षरं तमसि लीयते (आ) सु. 2 .... 274 28 .... 275 19 अक्षरे परमे व्योमन् (स) म. ना. 1-1 .... 2752 अग्नेरूप्रज्वलनं वायोस्तिर्यपवनं (स) .... 864 अग्नेशिशवस्य माहात्म्यं (आ) मत्स्यपुराणं .... 6621 अचेतना परार्था च (स) परमसंहिता 2 179 अजामेकां (स) श्वे. 4-5, म. ना. 12-5 .... 123 अङ्गुलस्याष्टभागोऽपि (स) वि. पु. .... • 102 अजान् ह वै पृश्नीस्तपस्यमानान् (स) .... 72 अजोऽपि सन्नव्ययात्मा (स) गी. 4-6 .... 299 , (आ) गी. 4-6 .... 300 15 अणोरणीयान्महतो महीयान् (स) क. 1-2-20 श्वे. 3 20, म ना. 12-1, कै. 20. अत्र विद्विष्टमनसः (आ) स्कान्दम् अथ नामधेयं सत्यस्य सत्यं (स) बृ. 2-3-6 ..... 188 ___.... 246 13 अथात आदेशो नेति नेति (स) बृ. 2-3-6 246 अथातो ब्रह्मजिज्ञासा (स) ब्र. सू. 1-1-1 अद्भयस्संभूतः (आ) म. ना. 1-3 . 43 22 अद्भयसंभूतो हिरण्यगर्भः (स) म ना. 1-3 .. अद्रश्यमग्राह्य (स) मु. 1-1-6 .... 127 14 अधिकं तु भेदनिर्देशात् (स) ब्र. सू • 2-1-22 .... 1727 313 ot corrF50 or or .... 59 219 43 35
SR No.010565
Book TitleTattvarthamuktakalap and Sarvarthasiddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVedantacharya
PublisherSrinivasgopalacharya
Publication Year1956
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size42 MB
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