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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८] प्रथम अध्याय ३३९ दर्शनकी अपेक्षा चक्षु और अचक्षुदर्शनमें आदिके १२ गुणस्थान होते हैं । अवधिदर्शनमें असंयतसम्यग्दृष्टि आदि ९ गुणस्थान होते हैं। केवलदर्शनमें अन्तके दो गुणस्थान होते हैं। लेश्याकी अपेक्षा कृष्ण, नील और कापोत लेश्यामें मिथ्यादृष्टि आदि ४ गुणस्थान होते हैं। पीत और पद्म लेश्यामें आदिके ७ गुणस्थान होते हैं। शुक्ल लेश्यामें श्रादिके १३ गुणस्थान होते हैं । १४ वाँ गुणस्थान लेश्यारहित है। भव्यत्वकी अपेक्षा भव्योंके १४ ही गुणस्थान होते हैं। अभव्यके पहिला गुणस्थान ही होता है। __ . सम्यक्त्वकी अपेक्षा क्षायिकसम्यक्त्वमें असंयतसम्यग्दृष्टि आदि ११ गुणस्थान होते हैं। वेदकसम्यक्त्वमें असंयतसम्यग्दृष्टि आदि ४ गुणस्थान होते हैं। औपशमिक सम्यक्त्वमें असंयतसम्यग्दृष्टि आदि ८ गुणस्थान होते हैं। सासादनसम्यग्दृष्टिके एक सासादन गुणस्थान ही होता है । सम्यग्मिथ्याष्टिके सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थान ही होता है । मिथ्यादृष्टिके मिथ्यादृष्टि गुणस्थान ही होता है। संज्ञाकी अपेक्षा संज्ञीके आदिसे १२ गुणस्थान होते हैं । असंज्ञीके प्रथम गुणस्थान ही होता है । अन्तके दो गुणस्थानों में संज्ञी और असंज्ञी व्यवहार नहीं होता। __आहारकी अपेक्षा आहारकके आदिसे १३ गुणस्थान होते हैं । अनाहारकके विग्रहगतिमें मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि ये तीन गुणस्थान होते हैं। समुद्बात करनेवाले सयोगकेवली और अयोगकेवली अनाहारक होते हैं । सिद्ध गुणस्थान रहित होते हैं। संख्याप्ररूपणाका वर्णन भी सामान्य और विशेषकी अपेक्षा किया गया है। सामान्यसे मिथ्या दृष्टि जीव अनन्तानन्त है । सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि, असंयतसम्यग्दृष्टि और देशसंयत पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं। यह इस प्रकार है-द्वितीय गुणस्थानमें बावन करोड़ ५२०००००००, तृतीयमें एक सौ चार करोड़ १०४०००००००, चतुर्थ में सात सौ करोड़ ७०००००००००, और पञ्चमगुणस्थानमें तेरह करोड़ १३००००००० संख्या है । कहा भी है-देशविरतमें तेरह करोड़, सासादनमें बावन करोड़, मिश्रमें एक सौ चार करोड़ और असंयतमें सात सौ करोड़ जीवों की संख्या है। प्रमत्तसंयत कोटिपृथक्त्व प्रमाण हैं। प्रश्न-पृथक्त्व किसे कहते हैं ? उत्तर-तोनसे अधिक और नौसे कम संख्याको पृथक्त्व कहते हैं। प्रमत्तसंयत जीवों की संख्या ५९३९८२०६ है। अप्रमत्त संयत जीव संख्यात हैं अर्थात् २९६९९१०३ हैं। अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण, सूक्ष्मसाम्पराय और उपशान्तकषाय ये चार उपशमक हैं इनमें प्रत्येक गुणस्थानके आठ २ समय होते हैं और आठ समयों में क्रमशः १६,२४,३०,३६, ४२,४८,५४,५४ सामान्यसे उत्कृष्ट संख्या है। विशेषसे प्रथम समयमें १,२,३ इत्यादि १६ तक उत्कृष्ट संख्या होती है । इसी प्रकार द्वितीय आदि समयों में समझना चाहिए। कहा भी है-२६,२४,३०,३६,४२,४८,५४,५४ संख्याप्रमाण उपशमक होते हैं । For Private And Personal Use Only
SR No.010564
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1949
Total Pages661
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size10 MB
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