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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३८ तत्त्वार्थवृत्ति हिन्दी-सार [१८ ७ अप्रमत्तसंयत ८ अपूर्वकरण ९ अनिवृत्तिकरण १० सूक्ष्मसाम्पराय ११ उपशान्तकषाय १२ क्षीणकषाय १३ सयोगकेवली १४ अयोगकेवली। इन चौदह गुणस्थानों में जीवोंका वर्णन चौदह मार्गणाओंकी अपेक्षा किया गया है। मार्गणाएँ ये हैं-१ गति २ इन्द्रिय ३ काय ४ योग ५ वेद ६ कषाय ७ ज्ञान ८ संयम ९ दर्शन १० लेश्या ११ भव्यत्व १२ सम्यक्त्व १३ संज्ञा १४ आहार। सामान्यसे जीवमें मिथ्यादृष्टिसे अयोगकेवलीपर्यन्त सभी गुणस्थान पाये जाते हैं। विशेषसे गतिकी अपेक्षा नरकगतिमें सातों ही नरकों में मिध्यादृष्टि आदि ४ गुणस्थान होते हैं। तिर्यञ्चगतिमें देशसंयत सहित ५ गुणस्थान हैं। मनुष्यगतिमें १४ ही गुणस्थान होते हैं । देवगतिमें आदिके ४ गुणस्थान होते हैं। इन्द्रियकी अपेक्षा एकेन्द्रियसे चतुरिन्द्रियपर्यन्त प्रथम गुणस्थान ही होता है। पश्चेन्द्रियके १४ ही गुणस्थान होते हैं। कायकी अपेक्षा पृथिवी आदि स्थावरकायमें प्रथम गुणस्थान होता है। त्रसकायमें १४ ही होते हैं। योगकी अपेक्षा तीनों योगोंमें सयोगकेवलीपर्यन्त गुणस्थान होते हैं। अयोग अवस्थामें केवल अयोगकेवली गुणस्थान होता है । वेदकी अपेक्षा तीनों वेदोंमें अनिवृत्तिबादरपर्यन्त ९ गुणस्थान होते हैं। वेदरहित जीवोंके अनिवृत्तिबादरसे अयोगकेवली पर्यन्त ६ गुणस्थान होते हैं। अनिवृत्तिबादर गुणस्थानके ६ भाग होते हैं। उनमेंसे प्रथम ३ भागों में वेदकी निवृत्ति न होनेसे वे सवेद हैं और अन्तके ३ भाग अवेद हैं । अतः अनिवृत्तिकरण सवेद और अवेद दोनों प्रकारका है। कषायकी अपेक्षा क्रोध, मान और मायामें अनिवृत्तिबादर पर्यन्त ९ गुणस्थान होते हैं। लोभ कषायमें मिथ्यादृष्टि आदि १० गुणस्थान होते हैं। अकषाय अवस्था में उपशान्त कषायसे अयोगकेवली पर्यन्त ४ गुणस्थान होते हैं । ज्ञानकी अपेक्षा कुमति, कुश्रुत और कुअवधि में प्रथम और द्वितीय गुणस्थान होते हैं। सम्यग्मिथ्याष्टिके ज्ञान या अज्ञान नहीं होता किन्तु अज्ञान सहित ज्ञान होता है । कहा भी है-मिश्र में तीन ज्ञान तीन अज्ञानसे मिश्रित होते हैं। इसलिये यहाँपर मिश्र गुणस्थानका वर्णन नहीं किया गया है। मिश्रका वर्णन अज्ञान प्ररूपणामें ही किया गया है क्योंकि सम्यग्मियादृष्टिका ज्ञान यथार्थ वस्तुको नहीं जानता है। __मति, श्रुत और अवधिज्ञानमें असंयतसम्यग्दृष्टिसे क्षीणकषायपर्यन्त ९ गुणस्थान होते हैं। मनःपर्ययज्ञानमें प्रमतसंयतसे क्षीणकषायपर्यन्त ७ गुणस्थान होते हैं। केवलज्ञानमें सयोगकेवली और अयोगकेवली ये दो गुणस्थान होते हैं। संयम की अपेक्षा सामायिक और छेदोपस्थापना संयममें प्रमत्त आदि चार गुणस्थान होते हैं। परिहारविशुद्धिसंयममें प्रमत्त और अप्रमत्त दो गुणस्थान होते हैं । सूक्ष्मसाम्पराय संयममें सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थान ही होता है । यथाख्यात संयममें उपशान्तकषायसे अयोगकेवलीपर्यन्त ४ गुणस्थान होते हैं । देशसंयममें पञ्चम गुणस्थान ही होता है। असंयत अवस्थामें आदिके ४ गुण-स्थान होते हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.010564
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1949
Total Pages661
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size10 MB
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