SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 107
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१० oron. विषय-सूची अन्य क्षेत्रोंमें कालका परि | वैमानिक देवोंमें परस्परमें वर्तन नहीं होता है १४२ ३९३ || १६६-१६७ हमवत आदि क्षेत्रवर्ती जीवों वैमानिक देवोंके शरीरकी की आय आदिका वर्णन १४२-१४३ ३९४ ऊँचाई भरतक्षेत्रका विस्तार १४४ , ३९४ | वैमानिक देवोंकी लेश्याएँ १६७-१६८ ४१० समुद्रके बड़वानलोंका वर्णन १४४ ३९४ - कल्प कहां है १६८ ४११ धातकीखण्ड और पुष्करार्ध लौकान्तिक देवोंका स्वरूप, द्वीपमें क्षेत्रादिकी संख्या १४५-१४६ ३९५-९६ / स्थान और भेद १६८-१६९ ४११ मनुष्य कहां होते हैं विजय आदि विमानोंके देवों मनुष्योंके भेद १४६-१५० ३९६-४०० ! को कितने भव धारण करने कर्मभूमियोंका वर्णन १५०-१५१ ४०० । पड़ते हैं १६९-१७० ४१२ कर्मभूमिवर्ती मनुष्यों और तिर्यञ्चोंका स्वरूप १७० . ४१२ तिर्यञ्चोंकी आयुका वर्णन १५१-१५३ ४०१-२ देवोंकी आयुका वर्णन १७०-१७७ ४१२-४१५ तीन पल्योंका स्वरूप १५२-१५३ ४०२ पांचवां अध्याय चतुर्थ अध्याय अजीवकाय द्रव्योंके नाम १७८ ४१६ देवोंके मूलभेद १५४ ४०३ द्रव्य कितने हैं १७९ ४१६ देवोंकी लेश्याओंका वर्णन १५४ ४०३ वैशेषिकाभिमत द्रव्योंका देवोंके उत्तर भेद १५४-१५५ खण्डन ४०३ १८० ४१६ देवोंमें इन्द्र आदिकी व्यवस्था १५५-१५६ द्रव्योंकी विशेषता १८१-१८२ ४१७-४१८ देवोंमें इन्द्रिय सुखका वर्णन १५६-१५८ ४०४ द्रव्योंके प्रदेशोंकी संख्या १८३-१८४ ४१८ भवनवासियोंके दश भेद १५८ जीवादि द्रव्योंका निवास १८४-१८६ ४०५ व्यन्तरोंके आठ भेद १५९ ४०५ धर्मादि द्रव्योंका स्वभाव १८८-१९५ ४२० ज्योतिषी देवोंके भेद तथा पुद्गल द्रव्यका लक्षण १९५-१९८ ४२०.४२७ निवास, पृथिवीतलसे पुद्गलके भेद १९८ ४२७ ऊँचाई आदि १५९-१६० - ४० स्कन्ध और अणुकी उत्पत्ति ज्योतिषी देवोंकी गतिका कैसे होती है ? १९९-२०० ४२७-४२८ नियम द्रव्यका लक्षण २००-२०१ द्वीप और समुद्रोंमें ज्योतिषी नित्यका लक्षण २०१-२०२४२८ देवोंकी संख्या १६०-१६१ वस्तुमें अनेक धर्मोकी सिद्धि २०२ ४१८-४३० ज्योतिषी देवोंके निमित्तसे पुद्गल परमाणुओंके परस्पर . व्यवहारकालकी प्रवृत्ति बन्ध होनेका नियम २०३-२०५ बन्धकी विशेषता मानुषोत्तर पर्वतके बाहर ४३१ ज्योतिषीदेव अवस्थित हैं १६१ ४०६ द्रव्यका लक्षण २०७-२०८ ४३१ ज्योतिषी देवोंके विमानोंका कालद्रव्यका वर्णन २०८-२०९ विस्तार गुण और पर्यायका लक्षण २१० ४३३ १६१ ४०६-७ वैमानिक देवोंका स्वरूप, छठवां अध्याय भेद, स्थान आदि १६२ ४०७ | योगका लक्षण . २११ - ४३४ सोलह स्वर्गोके नाम तथा आस्रवका लक्षण २११-२१२ पटलोंका वर्णन १६२-१६६ ४०७-१० । शुभ अशुभ योगके निमित्तसे ४०४ ४०६ ४३० ४३२ For Private And Personal Use Only
SR No.010564
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1949
Total Pages661
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy