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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विषय-सूची १०५ ४५८ ४५९ ४६० ४३७ ४३८ . ४६२ " चार m ४६३ mr आस्रवमें विशेषता २१२-२१३ ४३४-३५ | सल्लेखनाका स्वरूप २४६-२४७ ४५७ किन जीवोंके कौनसा आस्रव सम्यग्दर्शनके अतीचार २४७-२४८ होता है हिसाण तके अतीचार २४८-२४९ ४५९ साम्परायिक आस्रवके भेद के अतीचार २४९ ४५९ आस्रवमें विशेषताके कारण २१५ ४३६ अचौर्याणुव्रतके अतीचार २४९-२५० आस्रवके अधिकरणका स्व ब्रह्मचर्याणुव्रतके अतीचार २५०-२५१ रूप तथा भेद २१५-२१६ . ४३७ । परिग्रहपरिमाणव्रतके अतीचार २५१ जीवाधिकरणके भेद २१६-२१७ दिग्वतके अतिचार २५१-२५२ अजीवाधिकरणके भेद २१७-२१८ ४३८ देशव्रतके अतिचार २५२ ४६१ ज्ञानावरण और दर्शनावरण अनर्थदण्डव्रतके अतिचार २५२-२५३ ४६१ कर्मके आस्रव २१८-२१९ सामायिकके अतिचार असातावेदनीयके आस्रव २१९-२२१ ४३९ प्रोषधोपवासके अतिचार २५३-२५४ ४६२ सातावेदनीयके आस्रव २२१-२२२ उपभोगपरिभोगवतके अतिचार २५४ दर्शनमोहनीयके आस्रव अतिथिसंविभागवतके अतिचारित्रमोहनीयके आस्रव २२३ ४४१ २५४-५५ आयुकर्मके आस्रव २२४-२२६ ४४२-४३ सल्लेखनाके अतिचार २५५ अशुभनाम कर्मके आस्रव २२६-२२७ दानका लक्षण २५५-२५६ शुभनाम कर्मके आस्रव २२७ दानके फलमें विशेषता २५६-२५७ ४६४ तीर्थकर प्रकृतिके आस्रव २२७-२२९ आठवां अध्याय नीचगोत्रके आस्रव २२९-२३० उच्चगोत्रके आस्रव २३० बन्धके हेतु २५८-२५९ ४६५ अन्तरायके आस्रव बन्धका स्वरूप २६०-२६१ ४६६ बन्धके भेद सातवां अध्याय २६१-२६२ प्रकृति बन्धके भेद प्रभेद २६२-२६३ ४६७ व्रतका लक्षण २३१-२३२ ४४७ ज्ञानावरणके पांच भेद २६३-२६४ ४६८ व्रतके भेद ४४८ अहिंसा आदि पांच व्रतोंकी दर्शनावरणके नव भेद २६४-२६५ ४६८-६९ वेदनीयके दो भेद २६५४६९ पांच पांच भावनाएँ २३२-२३४ हिंसा आदि पांच पापोंकी : मोहनीयके अट्ठाईस भेद २६५-२६७ ४६९-७० भावनाएँ २३५-२३६ आयुकर्मके चार भेद २६८ ४७१ मंत्री आदि चार भावनाएँ २३६-२३७ ४५० किस संहननवाले जीव कौनजगत् और कायकी भावना २३७ ४५० कौन स्वर्ग और नरकों में हिंसाका लक्षण २३८-२३९ जाते हैं। किस-काल में, किस क्षेत्रमें और किस असत्यका लक्षण २३९-२४० स्तेयका लक्षण गुणस्थान में कौन संहनन २४० २४०-२४१ अब्रह्मका लक्षण ४५३ होता है २७० ४७१-७४ परिग्रहका लक्षण २७२४७४ २४१-२४२ गोत्रकर्म के भेद अन्तरायके भेद २७२४७४ व्रतीका लक्षण २४२ व्रतीके भेद आठों कमों कोउत्कृष्ट और २४२-२४३ ग हस्थका लक्षण और सात जघन्य स्थिति २७२-२७४ ४७५-७६. शीलोंका वर्णन २४३-२४६ ४५५-५७ - अनुभागबन्धका स्वरूप २७५ ४७६ ४४८ For Private And Personal Use Only
SR No.010564
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1949
Total Pages661
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size10 MB
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