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तत्वार्थ सूत्र
[१.२१.२२. रण कारण है; तो भी कोई अवधिज्ञान भवप्रत्यय और कोई क्षयोपशम निमित्तक कहलाता है यह भेद अन्य निमित्तों की अपेक्षा मे किया गया है जिनका निर्देश पहले किया ही है।
इन दो अवधिज्ञानों में से भवप्रत्यय अवधिज्ञान देवगति के जीवों के और नरकगति के जीवों के होता है। जैसे पक्षियों में जन्म से ही शिक्षा उपदेश के बिना ही आकाश में उड़ने की शक्ति होती है वैसे ही इन दो गतियों के जीवों के बिना प्रयत्न के जन्म से अवधिज्ञान होता है। तथा क्षयोपशमनिमित्तक अवधिज्ञान तिर्यंच और मनुष्यों के होता है। इसके लिये इन्हें खास योग्यता सम्पादित करनी पड़ती है जिसके होने पर ही यह अवधिज्ञान होता है। ____ यही सबब है कि तिर्यंचों और मनुष्यों में यह सब के नहीं पाया जाता है । यद्यपि मनुष्यों में तीर्थंकर मात्र के और किसी किसी विशिष्ट अन्य मनुष्य के भी जन्म से ही अवधिज्ञान होता है, इन्हें इसके लिये व्रत नियम आदि का अनुष्टान नहीं करना पड़ता, पर यह अपवाद है।
सूत्र में आयोपशमनिमित्तक अवधिज्ञान के छह भेद बतलाये हैं। वे ये हैं अनुगामी, अननुगामी, बर्धमान, हीयमान, अवस्थित और अनवस्थित।
१ जैसे सूर्य का प्रकाश उसके साथ साथ चलता है वैसे ही जो ज्ञान उसके उत्पत्ति स्थान को छोड़ कर दूसरे स्थान पर या उत्पत्ति के भव को छोड़ कर दूसरे भव में चले जाने पर भी बना रहता है वह अनुगामी अवधिज्ञान है।
२ जैसे उन्मुग्ध पुरुष के प्रश्न के उत्तर में दूसरा पुरुष जो वचन कहता है वह वहीं रह जाता है उन्मुग्ध पुरुष उसे ग्रहण नहीं करता वैसे ही जो अवधिज्ञान उसके उत्पत्ति स्थान को छोड़ देने पर कायम नहीं रहता या भवान्तर में साथ नहीं जाता वह अननुगामी अवधिज्ञान है।