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________________ १.२१.२२ ] अवधिज्ञान के भेद और उनके स्वामी ४३ भवप्रत्यय अवधिज्ञान देव और नारकों के होता है। क्षयोपशम निमित्तक अवधिज्ञान छः प्रकार का है जो शेष अर्थात् तिर्यंचों और मनुष्यों के होता है। अवधिज्ञान के भवप्रत्यय और क्षयोपशम निमित्तक ये दो भेद हैं। क्षयोपशमनिमित्तक का दूसरा नाम गुणप्रत्यय भी है। जिसके उत्पन्न होने में भव ही निमित्त है अर्थात् जिसकी उत्पत्ति में व्रत नियम आदि कारण नहीं पड़ते किन्तु जो पर्याय विशेष की अपेक्षा जन्म से ही उत्पन्न होता है वह भवप्रत्यय अवधिज्ञान है। जिस प्रकार पक्षियों को आकाश में उड़ने की शिक्षा महीं लेनी पड़ती । वे स्वभाव से ही उड़ने लगते हैं। उड़ना उनका पर्यायगत धर्म है। उसी प्रकार भव प्रत्यय अवधि ज्ञान जानना चाहिये । तथापि इसके उत्पन्न होने में इतनी विशेषता है कि यदि भपप्रत्यय अवधिज्ञान का अधिकारी सम्यग्दृष्टि होता है तो वह भव के प्रथम समय से ही उत्पन्न हो जाता है और यदि अधिकारी मिथ्यादृष्टि होता है तो वह पर्याप्त होने के बाद ही उत्पन्न होता है। तथा जो अवधिज्ञान जन्म से नहीं होता किन्तु व्रत नियम आदि के बल से प्राप्त होता है वह क्षयोपशम निमित्तक अवधिज्ञान है। शंका-क्या भवप्रत्यय अवधिज्ञान में क्षयोपशम नहीं होता? समाधान-अवधिज्ञानावरण कर्म का क्षयोपशम तो उसमें भी होता है तथापि उसकी उत्पत्ति में भव की प्रधानता है इसलिये उसे भवप्रत्यय अवधिज्ञान कहा है और क्षयोपशमनिमित्तक अवधिज्ञान भव की प्रधानता से नहीं होता। किन्तु अन्य निमित्तों के मिलने पर जब अवधिज्ञानावरण का क्षयोपशम होता है तब होता है इसलिये इसे क्षयोपशमनिमित्तक कहा है। तात्पर्य यह है कि कोई भी अवधिज्ञान क्यों न हो वह क्षयोपशम के बिना तो हो ही नहीं सकता; अवधिज्ञानावरण का क्षयोपशम तो अवधिज्ञान मात्र में अपेक्षित है। वह उसका साधा
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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