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________________ ३८ तत्त्वार्थसूत्र १.२०. श्रुतज्ञान उत्पन्न होता है। मतिज्ञान हुए बिना श्रतज्ञान नहीं हो सकता यह इसका भाव है। फिर भी मतिज्ञान को श्रुतज्ञान का निमित्त कारण मानना चाहिये उपादान कारण नहीं; क्योंकि उसका उपादान कारण तो श्रुतज्ञानावरण कर्म का क्षयोपशम ही है। शंका-मतिज्ञान से श्रतज्ञान में क्या अन्तर है ? ___समाधान-पाँच इन्द्रिय और गन इनमें से किसी एक के निमित्त से किसी भी विद्यमान वस्तुका सर्व प्रथम मतिज्ञान होता है। तदन्तर इस मतिज्ञान पूर्वक 'उस जानी हुई वस्तुके विषयमें या उसके सम्बन्धले अन्य वस्तुके विषय में विशेष चिन्तन चालू होता है जो श्रुतज्ञान कहलाता है। उदाहरणार्थ-मनुष्य विषयक चाक्षुष मतिज्ञान के होने के बाद उसके सम्बन्ध में मनमें यह मनुष्य है, पूर्व से आया है और पश्चिम को जा रहा है, रंग रूप तथा वेशभूषा से ज्ञात होता है कि यह पंजाबी होना चाहिये आदि विकल्प का होना श्रुतज्ञान है। मतिज्ञान विद्यमान वस्तु में प्रवृत्त होता है और श्रुतज्ञान-अतीत, वर्तमान तथा अनागत इन त्रैकालिक विषयों में प्रवृत्त होता है । मतिज्ञान पांच इन्द्रिय और मन इन छहों के निमित्त से प्रवृत होता है किन्तु श्रुतज्ञान केवल मनके निमित्त से ही प्रवृत्त होता है इस प्रकार मतिज्ञान और श्रुतज्ञान में यही अन्तर है । । शंका-क्या श्रुतज्ञान की उत्पत्ति इन्द्रियों से नहीं होती ? ___ समाधान-जैसे मतिज्ञान की उत्पत्तिमें इन्द्रियां साक्षात् निमित्त होती हैं वैसे श्रुतज्ञान की उत्पत्ति में साक्षात् निमित्त नहीं होती, इसलिये श्रुतज्ञान की उत्पत्ति इन्द्रियों से न मानकर मन से ही मानी है। तथापि स्पर्शन आदि इन्द्रियों से मतिज्ञान होने के बाद जो श्रुतज्ञान होता है उसमें परम्परा से वे स्पर्शन आदि इन्द्रियां निमित्त मानी है, इसलिये मतिज्ञान के समान श्रुतज्ञान की उत्पत्ति भी पांच इन्द्रिय और मन से कही जाती है पर यह कथन औपचारिक है।
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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