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________________ [ १.१७. . मतिज्ञान तत्त्वार्थसूत्र अपेक्षा १२ प्रकार के पदार्थो का ज्ञान घटित करके बतलाया है, वैसे ही शेष इन्द्रिय और मन की अपेक्षा घटित कर लेना चाहिये। ___ यहाँ इतना विशेष जानना चाहिये कि यह बारह प्रकार के पदार्थों का ज्ञान अवग्रह, ईहा अवाय और धारणारूप चार प्रकार का होता है 1. जो कि पाँच इन्द्रिय और मन इन छहों से उत्पन्न नि क भद होता है। इसी से इसके २८८ भेद किये हैं। इनमें व्यंजनावग्रह के ४८ भेद मिला देने पर मतिज्ञान के कुल भेद ३३६ होते हैं ॥१६॥ अवग्रह आदि चारों का विषय अर्थस्य ॥ १७॥ अर्थ के अवग्रह आदि चारों मतिज्ञान होते हैं। पहले पाँच इन्द्रिय और मन के विषयभूत जो बारह प्रकार के पदार्थ बतला आये हैं वे सब अर्थ कहलाते हैं। उनका सूत्र का प्राशय राष अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणारूप चारों प्रकार का ज्ञान होता है यह इस सूत्र का भाव है। ___ यद्यपि स्थिति ऐसी है तो भी ये इन्द्रियों के विषय अर्थ और ... व्यंजन इन दो भागों में बट जाते हैं जिससे अवग्रह अवमह के दो भेद ज्ञान के भी दो भेद हो जाते हैं-अथोवग्रह होने के कारण १ और व्यंजनावग्रह । ईहादिक के ये दो भेद नहीं प्राप्त होने का कारण यह है कि व्यंजन पदार्थ का केवल अवग्रह ही होता है, ईहादिक नहीं होते। अब अर्थ किसे कहते हैं सर्व प्रथम इसका विचार करते हैं। पूज्यपाद स्वामी ने अपनी सर्वार्थसिद्धि में लिखा है कि चक्षु और मन अप्राप्यकारी हैं तथा शेष चार इन्द्रियाँ प्राप्यकारी हैं। अर्थ की परिभाषा दसरी बात यह लिखी है कि जो शब्दादि अर्थ अव्यक्त होते हैं वे व्यंजन कहलाते हैं। इस पर से अर्थ का यह स्वरूप फलित
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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