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________________ तत्त्वार्थसूत्र [ १. १४. पहले पाँच ज्ञान बतला आये हैं। उनमें से सर्वप्रथम जो मतिज्ञान है वह उपयोगरूप कैसे होता है यह प्रस्तुत सूत्र में बतलाया है। इन्द्रियाँ पाँच हैं-स्पर्शन, रसन, प्राण, चक्षु और श्रोत्र। इनके निमित्त से तथा अनिन्द्रिय अर्थात् मनके निमित्ति से मतिज्ञान की प्रवृत्ति होती है यह इस सूत्र का भाव है। शंका--स्पर्शन आदि को इन्द्रिय क्यों कहा ? समाधान--स्पर्शन आदि को इन्द्रिय कहने के अनेक कारण हैं जिनमें से कुछ ये हैं. एक तो इन्द्रिय में इन्द्र शब्द का अर्थ आत्मा है। किन्तु जब तक यह आत्मा कर्मो से आवृत रहता है तब तक स्वयं पदार्थों को जानने में असमर्थ रहने के कारण इन स्पशन आदि के द्वारा उनका ज्ञान होता है इसलिये वे इन्द्रिय कहलाती हैं। दूसरे इनके द्वारा सूक्ष्म आत्मा के अस्तित्व की पहिचान को जाती है अतः वे इन्द्रिय कहलाती हैं। तीसरे इन्द्र शब्द का अर्थ नामकर्म होने से इनके द्वारा उनकी रचना होती है इसलिये वे इन्द्रिय कहलाती है । शंका-जिन कारणों से स्पर्शन आदि को इन्द्रिय कहा है वे कारण मन में भी तो पाये जाते हैं फिर उसे अनिन्द्रिय क्यों कहा ? समाधान-इन्द्रियों के समान मन अवस्थित स्वभाववाला न हो कर चंचल है, वह निरन्तर विविध विषयों में भटकता रहता है इसलिये उसे अनिन्द्रिय, कहा है। __ शंका-मतिज्ञान की उत्पत्ति में इन्द्रिय और मन के समान प्रकाश आदि भी तो निमित्त हैं उनका यहाँ संग्रह क्यों नहीं किया ? समाधान-जैसे इन्द्रिय और मन से मतिज्ञान की उत्पत्ति देखी जाती है वैसे प्रकाश आदि से नहीं, क्योंकि किसी को प्रकाश आदि की आवश्यकता पड़ती है और किसी को नहीं इसलिये प्रकाश
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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