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________________ घानता तत्त्वार्थसूत्र [१. ३. धर्मश्रवण इस निमित्त को छोड़ कर शेष निमित्तों से उत्पन्न होनेवाला सम्यग्दर्शन निसर्गज है, क्योंकि इस सम्यग्दर्शन के उत्पन्न होने में परोपदेश की आवश्यकता नहीं पड़ती और धर्मश्रवण इस निमित्त से उत्पन्न होनेवाला सम्यग्दर्शन अधिगमज है, क्योंकि यह सम्यग्दर्शन परोपदेश से उत्पन्न हुआ है। इसी प्रकार जो आज्ञासम्यक्त्व आदि रूप से सम्यग्दर्शन के दस भेद गिनाये हैं सो उनका भी इन दोनों प्रकार के सम्यग्दर्शनों में विचार कर अन्तर्भाव कर लेना चाहिये। ___ एक ऐसी मान्यता है कि प्रत्येक कार्य का काल नियत है उसी सगय HT वह कार्य होता है अन्य काल में नहीं। जो पेला " मानते हैं वे काल के सिवा अन्य निमित्तों को नहीं मानते। पर विचार करने पर ज्ञात होता है कि उनका ऐसा मानना युक्तियुक्त नहीं है, क्योंकि कार्य की उत्पत्ति में जैसे काल एक निमित्त है वैसे अन्य भी निमित्त हैं, अतः कार्य की उत्पत्ति में केवल काल को प्रधान कारण मानना उचित नहीं है। अब तक सम्यदर्शन की उत्पत्ति के बाह्य कारणों का विचार किया अब उन कारणों का विचार करते हैं जिनके होने पर सम्यग्दर्शन नियम नाव से उत्पन्न होता है। सम्यग्दर्शन आत्मा का स्वभाव __ रन कारण " है पर वह दर्शनमोहनीयकर्म से घातित हो रहा " है। किन्तु जब दर्शनमोहनीयकर्म का अभाव होता है तब आत्मा का वह स्वभाव प्रकट हो जाता है और इसे ही सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति कहते हैं। दर्शनमोहनीयकर्म का यह अभाव तीन प्रकार से होता है उपशम से क्षय से और क्षयोपशम से। जैसे जल में कतकादि द्रव्य के डालने से कीचड़ बैठ जाता है और पानी निर्मल हो जाता है । यद्यपि यहाँ कीचड़ का जल में से प्रभाव नहीं हुआ, वह वहाँ विद्यमान है, फिर भी वह उस अवस्था में काम नहीं करता है। इसी प्रकार दर्शनमोहनीयकर्म के उपशम हो जाने से सम्यग्दर्शन गुण
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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