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________________ गमज उत्पति १. ३.] सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति के हेतु नहीं होता, अतः प्रकृत में अधिगम का अर्थ ज्ञान न लेकर परोपदेश लिया है। और जब अधिगम का अर्थ परोपदेश हुआ तो निसर्ग का अर्थ परोपदेश के बिना अपने आप फलित हो जाता है। जैसे बच्चे को अपनी मातृभाषा सीखने के लिये किसी उपदेशक की निज और अधि, आवश्यकता नहीं होती । वह प्रति दिन के व्यवहार PA से ही उसे स्वयं सीख लेता है, किन्तु अन्य o भाषा के सीखने के लिये उसे उपदेशक लगता है। " उसी प्रकार जो सम्यग्दर्शन उपदेश के बिना निसर्ग से उत्पन्न होता है वह निसर्गज सम्यग्दर्शन है और जो सम्यग्दर्शन परोपदेश से पैदा होता है वह अधिगमज सम्यग्दर्शन है। यहाँ इतना विशेष समझना कि निसर्गज सम्यदर्शन की उत्पत्ति में तत्त्वज्ञानजन्य पूर्व संस्कार काम करता है और अधिगमज सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति में साक्षात् परोपदेश काम करता है। आगम में सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति के अनेक निमित्त बतलाये हैं। नरक गति में तीन निमित्त बतलाये हैं-जातिस्मरण, धर्मश्रवण और अन्य साधनों का वेदनाभिभव । इनमें से धर्मश्रवण यह निमित्त समन्वय तीसरे नरक तक ही पाया जाता है, क्योंकि देवों का आना जाना तीसरे नरक तक ही होता है, आगे के नरकों में नहीं। तियच गति और मनुष्य गति में तीन निमित्त पाये जाते हैं-जातिस्मरण, धर्मश्रवण और जिनबिम्बदर्शन । देवगति में चार निमित्त बतलाये हैं-जातिस्मरण, धर्मश्रवण, जिनमहिमादर्शन और देवऋद्धिदर्शन । ये चारों निमित्त सहस्रार स्वर्ग तक पाये जाते हैं। आगे देवऋद्धि दर्शन यह निमित्त नहीं पाया जाता। उसमें भी नौ प्रैवेयकवासी देवों के जातिस्मरण और धर्मश्रवण ये दो निमित्त पाये जाते हैं। नौ अनुदिश और पाँच अनुत्तर के देव सम्यग्दृष्टि ही होते हैं अतएव वहाँ सम्यदर्शन की उत्पत्ति के निमित्त नहीं बतलाये । इनमें से
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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