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________________ १०. ५-७.] मोक्ष होते ही जो कार्य होता है उसका विशेष वर्णन ४५५ निश्चित है, इसलिये तो मोक्ष प्राप्त होने के पहले इन भावों का अभाव बतलाया। अब रहे पारिणामिक भाव सो ये जीव के निज भाव हैं, इनके होने में कर्म अपेक्षित नहीं है इसलिये मोक्ष में पारिणामिक भावों को बाधक नहीं माना है, तथापि भव्यत्व और अभव्यत्व ये पारिणामिक भाव होते हुए भी जीव के स्वभाव न होकर आपेक्षिक भाव है। इनका सद्भाव मुक्त जाने की योग्यता और अयोग्यता पर निर्भर है, इसलिये मोक्ष प्राप्त होने के पहले भव्यत्व भाव का अभाव माना है। इस प्रकार मोक्ष प्राप्त होने के पहले किन भावों का अभाव हो जाता है इसका विचार किया । तथापि इन भावों में क्षायिक भाव भी सम्मिलित हैं और उनका कथन कर्मसापेक्ष है, इसलिये मोक्ष में उनका भी अभाव प्राप्त होता है जो कि इष्ट नहीं है, इसलिये इसी बात के बतलाने के लिये 'अन्यत्र केवल' इत्यादि सूत्र की रचना हुई है। बात यह है कि जितने भी क्षायिक भाव हैं वे सब आत्मा के निज भाव हैं पर संसार दशा में वे कर्मों से घातित रहते हैं और ज्यों ही उनके प्रतिबन्धक कर्मों का अभाव होता है त्यों ही वे प्रकट हो जाते हैं, इसलिये यद्यपि वे क्षायिक कहलाते हैं तथापि निज भाव होने से उनका मोक्ष में अभाव नहीं होता। यद्यपि प्रस्तुत सूत्र में ऐसे कुछ ही भाव गिनाये हैं पर इनके समान क्षायिक वीय, क्षायिक सुख आदि और भी जितने क्षायिक भाव हों उन सब का मोक्ष में अभाव नहीं होता ऐसा प्रकृत में यहाँ समझ लेना चाहिये ॥ ३-४॥ मोक्ष होते ही जो कार्य होता है उसका विशेष वर्णन-- तदनन्तरमूर्ध्वं गच्छत्यालोकान्तात् ।। ५ ।। ' पूर्वप्रयोगादसङ्गत्वाद् बन्धच्छेदात्तथागतिपरिणामाच ॥६॥ आविद्धकुलालचक्रवद्व्यपगतलेपालाबुवदेरण्डबीजवदग्निशिखावच्च ॥७॥
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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