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४५४ तत्त्वार्थ सूत्र
[१०. ३.४. जीव पहले योग का प्रभाव करता है और तत्पश्चात् शेष बचे चार कर्मों की समग्र निजरा करता है तब इसे मोक्ष प्राप्त होता है क्योंकि विजातीय द्रव्य से सम्बन्ध छूट कर आत्मा का निर्मल आत्म स्वरूप में स्थित हो जाना ही तो मोक्ष है ॥२॥ मोक्ष होते समय और जिन वस्तुओं का अभाव होता है उनका निर्देश
औपशमिकादिभव्यत्वानां च ॥ ३ ॥ अन्यत्र केवलसम्यक्त्वज्ञानदशनसिद्धत्वेभ्यः ॥ ४ ॥ तथा औपशमिक आदि भावों और भव्यत्व भाव के अभाव होने से मोक्ष होता है।
पर केवल सम्यक्त्व, केवलज्ञान, केवल दर्शन और सिद्धत्व भाव का अभाव नहीं होता।
मोक्ष प्राप्ति में जैसे पौद्गलिक कर्मों का अत्यन्त अभाव आवश्यक है वैसे ही कुछ अन्य भावों का अभाव भी आवश्यक है। यहाँ ऐसे भावों की गिनती कराते हुए औपशमिक भाव और भव्यत्व भाव इनका तो नामोल्लेख किया है किन्तु शेष भावों का अभाव बतलाने के लिये औपशमिक के आगे आदि पद दे दिया है। अब देखना यह है कि वे सब भाव कितने हैं और क्यों उनका अभाव मोक्ष में आवश्यक है । कुल भाव पाँच प्रकार के गिनाये हैं-औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक, औदयिक और पारिणामिक । इनमें से. औपशमिक, क्षायोपशमिक और औदयिक ये भाव कर्मों के सद्भाव में ही होते हैं, क्योंकि औपशमिक भावों में कर्मों का सत्ता में मौजूद रहना क्षायोपशमिक भावों में किन्हीं का सत्ता में रहना और किन्हीं का स्वमुखेन या किन्हीं का परमुखेन उदय होना तथा औदायिक भावों में कर्मों का उदय होना आवश्यक है। अब जब कि कर्मों का सर्वथा अभाव हो गया तो उनके सद्भाव में होनेवाले ये भाव किसी भी हालत में नहीं हो सकते यह