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[ ४ ] दूसरों की सलाह में न उलझे होते तो इसकी यह गति न होती । बम्बई प्रिंटिग काटेज प्रेसके मालिक श्री मेवालाल जी गुप्त का तो हमें आभार ही मानना चाहिये, क्योंकि उन्हीं की कृपा के फलस्वरूप हम इतने जल्दी इसे प्रकाश में लाने में समर्थ हुए हैं। श्री भाई कन्हैयालाल जी का और प्रेसके दूसरे कर्मचारियों का भी इस काम में हमें पूरा सहयोग मिला है । अतएव हम उनके भी आभारी हैं।
प्रस्तुत पुस्तक का प्रकाशन उतना निर्दोष न हो सका जितने की मैं आशा करता था, आशा है पाठक इसके लिये क्षमा करेंगे।
भाद्रपद शुक्ला १५ । वी०नि० सं० २४७६ ।
फूलचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री
संयुक्त मन्त्री श्री वर्णी जैन ग्रन्थमाला भदैनीघाट, बनारस