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प्रकाशक के दो शब्द श्री गणेशप्रसाद वर्णी जैन ग्रन्थमाला की द्वितीय माला का यह तृतीय मणि है जिसे भाद्रपद शुक्ला की पुण्य वेलामें प्रकाशित करते हुए मैं परम अानन्द का अनुभव करता हूँ।
इसके प्रकाशन में जान या अनजान अवस्था में दूसरों द्वारा जो अड़चने उत्पन्न की गई हैं उनकी चर्चा करना यहाँ व्यर्थ है । हमें तो खुशी इस बात की है कि उनके रहते हुए भी यह काम किसी न किसी रूप में सम्पन्न किया गया है।
आज हमारे बीच श्रद्धेय गुरुवर्य पं० देवकीनन्दनजी सिद्धान्तशास्त्री नहीं हैं। ग्रन्थमाला की स्थापना उनकी सत्कृपा का फल है। यदि वे हमारे बीच होते तो उन्हें ग्रन्थमाला की यह प्रगति देखकर कितना आनन्द होता इसकी कल्पना से हृदय भर आता है और आँखें अश्रुओं का स्थान ले लेती हैं। ____ पूज्य गुरुवर्य श्री १०५ तु० गणेशप्रसाद जी वर्णी अब पूरी तरह से अपनी वृद्ध अवस्था का अनुभव करने लगे हैं। दीर्घ आयु का उपभोग करते हुए उनका ग्रन्थमाला को चिरकाल तक आशीर्वाद मिलता रहे यही हमारी कामना है।
प्रस्तुत पुस्तक का मुद्रण समय पर न हो सका और दो वर्ष से भी अधिक समय तक यह प्रेसमें पड़ी रही यह दोष हमारा है । यदि हम