SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 443
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३८८ तत्त्वार्थसूत्र [८.५-१३. और पंचेन्द्रिय जाति ये पाँच भेद हैं। इनका उदय जीव के अपनी अपनी जाति में पैदा होने में निमित्त है। औदारिक आदि शरीरों को प्राप्त कराने में निमित्त शरीर नामकर्म है। शरीर के पाँच भेद पहले बतला आये हैं। शरीर के अङ्ग और उपाङ्गों के होने में निमित्त प्राङ्गोपाङ्ग नामकम है। इसके औदारिक शरीर आङ्गोपाङ्ग, वैक्रियिक शरीर आङ्गोपाङ्ग और आहारक शरीर आङ्गोपाङ्ग ये तीन भेद हैं। जिस कर्म का उदय शरीर के लिये प्राप्त हुए पुद्गलों का परस्पर बन्धन कराने में निमित्त है वह बन्धन नामकर्म है। इसके औदारिक बन्धन आदि पाँच भेद हैं। जिस नामकर्म का उदय शरीर के लिये प्राप्त हुए पुद्गलों का बन्धन छिद्ररहित होकर एक-सा हो जाय इस क्रिया में निमित्त है वह सङ्घात नामकर्म है । इसके औदारिक सङ्घात आदि पाँच भेद हैं। जिस 'नामकर्म का उदय शरीर की आकृति बनने में निमित्त है वह संस्थान नामकर्म है। इसके समचतुरस्त्र संस्थान, न्यग्रोधपरिमण्डलसंस्थान, स्वातिसंस्थान, कुब्जसंस्थान, वामनसंस्थान और हुण्डसंस्थान ये छः भेद हैं । शरीर का ठीक प्रमाण में होना समचतुरस्रसंस्थान है। शरीर का वड़ के वृक्ष के समान आयत गोल होना न्यग्रोधपरिमण्डलसंस्थान है । स्वाति वामी या सेमर को कहते हैं। इनके समान अर्थात् शरीर का नाभि से नीचे बड़ा और ऊपर छोटा होना स्वातिसंस्थान है। शरीर का कुबड़ा होना अर्थात् हाथ, पाँव और गर्दन का लम्बा होना और मध्य भाग का छोटा होना कुब्जसंस्थान है, शरीर का बोना होना अर्थात् हाथ, पाँव और गर्दन आदि का छोटा होना और मध्य भाग का बड़ा होना वामनसंस्थान है और शरीर का विषम अवयवों वाला होना हुण्डसंस्थान है। जिसको जैसा शरीर का आकार मिलता है उसमें निमित्त संस्थान नामकर्म का उदय है। जिस कर्म का उद्य शरीर में हाड़ और सन्धियों की उत्पत्ति में निमित्त है वह संहनन नामकर्म है। इसके वज्रवृषभनाराचसंहनन, वज्रनाराचसंहनन, नाराचसंहनन,
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy