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________________ ३५६ तत्त्वार्थसूत्र . [७. २४-३७. शब्द बिना बोले उक्त प्रयोजनवश केवल आकृति दिखाकर संकेत करना रूपानुपात है। तथा मर्यादा के बाहर स्थित व्यक्ति को अपने पास बुलाने के लिये या उससे कोई काम लेने के लिये मर्यादा के बाहर कंकड़, ढेला आदि फेंकना पुद्गलक्षेप है। ये देशविरति व्रत के पाँच अतीचार हैं। शंका-पीछे जो दिग्दिरति व्रत के अतीचार बतला आये हैं वे देशविरतिव्रत में भी सम्भव हैं और इसी प्रकार जो देशविरति व्रत के अतीचार बतलाये गये हैं वे दिग्विरतिव्रत में भी सम्भव हैं। फिर इन दोनों व्रतों के अतीचार भिन्न भिन्न प्रकार से क्यों बतलाये गये हैं ? समाधान दिग्विरतिव्रत सार्वकालिक होता है और देशविरति बत सावकालिक होकर भी समय समय पर बदलता रहता है। इसलिये दिग्विरतिव्रत में क्षेत्र की मर्यादा का उल्लंघन प्रायः अज्ञानवश या विस्मृतिवश होता है किन्तु देशविरतिव्रत में ऐसी विस्मृति या अज्ञान बहुत ही कम सम्भव है। यहाँ अधिकतर लोभ या स्नेहवश व्रती श्रावक क्षेत्र की मर्यादा का गमनागमन द्वारा स्वयं उल्लंघन न करके मर्यादा के बाहर से काम निकालना चाहता है। यही कारण है कि इन दोनों शीलों के अतीचार भिन्न-भिन्न प्रकार से बतलाये गये हैं। रागवश परिहास के साथ असभ्य भाषण करना कन्दर्प है। परिहास व असभ्य भाषण के साथ ही साथ दूसरे को लक्ष्य करके शारी रिक कुचेष्टाएँ करना कौत्कुच्य है। धृष्टता से बिना - प्रयोजन के बहुत प्रलाप करना मौखय है। अपनी व्रत के अतीचार र आवश्यकता का विचार न करके अधिक कार्य करना असमीक्ष्याधिकरण है। जितने से भोगोपभोग का काम चल जाय उससे अधिक वस्त्र, आभूषण और ताम्बूल आदि रखना व उनका व्यय करना उपभोगपरिभोगानर्थक्य है। ये अनर्थदण्डविरतिव्रत के पाँच अतीचार हैं। सामायिक करते समय हाथ, पैर आदि शरीर के अवयवों को
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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