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________________ ७. २४-३७.] व्रत और शील के अतीचार निश्चल न रखकर व्यर्थ ही चलाते रहना, नींद का झोका लेना, कभी सामायिकवत के है कमर को सीधी करना और कभी झुका देना तथा " कभी आँखों का खोलना और कभी बन्द करना अतीचार आदि कायदुष्प्रणिधान है। सामायिक करते समय गुनगुनाने लगना आदि वचनदुष्प्रणिधान है। इसी प्रकार मनमें अन्य विकल्प ले आना, किसी का भला-बुरा विचारने लगना, मन को घर गृहस्थी के काम में फसा रखना मनोदुष्प्रणिधान है। सामायिक में उत्साह का न होना अर्थात् सामायिक का समय होने पर भी उसमें प्रवृत्त न होना या ज्यों त्यों कर सामायिक को पूरा करना अनादर है। एकाग्रता न होने से सामायिक की स्मृति न रहना स्मृत्यनुपस्थान है। ये सामायिक व्रत के पाँच अतीचार हैं। ____ जीव जन्तु को बिना देखे और कोमल उपकरण से बिना प्रमार्जन किये ही मल, मूत्र और श्लेष्म आदि का जहाँ तहाँ त्यागना अप्रत्यप्रोषधोपवास वत के वेक्षिताप्रमार्जितोत्सर्ग है। बिना देखे और बिना * प्रमार्जन किये ही पूजा के उपकरण, सुगन्ध, और अतीचार असार धूप आदि वस्तुओं का लेना अप्रत्यवेक्षिताप्रमार्जितादान है। बिना देखे और बिना प्रमार्जन किये ही भूमि पर संथाराचटाई आदि बिछाना अप्रत्यवेक्षितोप्रमार्जितसंस्तरोपक्रमण है। क्षुधा आदि से पीड़ित होने के कारण प्रोषधोपवास में या तत्सम्बन्धी प्रावश्यक कार्यों में उत्साह भाव न रहना अनादर है। तथा प्रोषधोवास करने के समय चित्त की चंचलता का होना स्मृत्यनुपस्थान है। ये प्रोपधोपवास व्रत के पाँच अतीचार हैं। आटा आदि की जो मर्यादा बतलाई है उसके बाद वह सचित्त हो जाता है तथापि 'अभी वह अचित्त ही है। ऐसा मानकर उस अमर्यादित वस्तु का भोजन में उपयोग करना सचित्ताहार है। जिस अचित्त वस्तु का उपर्युक्त सचित्त वस्तु से सम्बन्ध हो गया हो उसका भोजन
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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