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________________ तत्त्वार्थसूत्र [७. २४-३७. जो जमीन खेती बाड़ी के काम आती है वह क्षेत्र कहलाती हैं और घर आदि को वास्तु कहते हैं। इनका जितना परिग्रहपरिमाणवत " प्रमाण निश्चित किया हो लोभ में आकर उस प्रमाण र का उल्लंघन करना क्षेत्रवास्तुप्रमाणातिक्रम है। उदाहरणार्थ-किसी ने एक खेत और एक मकान का नियम लिया है। किन्तु कालान्तर में खेत के पास दूसरा खेत और मकान के पास दूसरा मकान मिल गया तो दोनों खेतों के बीच की मेढ़ और दोनों । मकानों के बीच की भीत को तोड़कर उनकी संख्या एक एक कर लेना क्षेत्रवास्तुप्रमाणातिक्रम है । व्रत लेते समय चाँदी और सोने का जो प्रमाण निश्चित किया हो उसका उल्लंघन करना हिरण्यसुवर्णप्रमाणातिक्रम है। उदाहरणार्थ-किसी ने वर्तमान में मौजूद चाँदी के बीस गहने और सोने के दस गहने रखने का नियम लिया किन्तु कालान्तर . में अतिरिक्त चाँदी व सोना के मिल जाने पर उसे उन गहनों में डलवाते जाना या जब तक चाँदी और सोना अधिक हो तब तक उसे धरोहर के रूप में या इष्ट मित्रों के यहाँ रख आना हिरण्यसुवर्णप्रमाणातिक्रम है। गाय, भेंस आदि पशु धन और चावल, गेहूँ आदि धान्य इनके स्वकृत प्रमाण का उल्लंघन करना धनधान्यप्रमाणातिक्रम है। उदाहरणार्थ-किसी ने पाँच गाय रखने का नियम लिया और उसके पास पाँच गाय हैं भी किन्तु उनके गर्भ रह जाने पर उन्हें उसी प्रकार रखे रहना धनप्रमाणातिक्रम है। इसी प्रकार धान्य के प्रमाण के अधिक हो जाने पर अधिक धान्य को अपने यहाँ न रखकर उसे अन्य के यहाँ ही रहने देना धान्यप्रमाणातिक्रम है। पूर्वकाल में भारत वर्ष में भी दासी दास की प्रथा प्रचलित थी और जो जितने अधिक दासी दास रखता था वह उतना ही बड़ा आदमी समझा जाता था। वह प्रथा बहुत कुछ अंश में बन्द होकर नौकर चाकर रखने को पद्धति चालू हुई है। दासी-दास अपनी जायदाद समझे जाते थे किन्तु नौकर
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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