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________________ ७. २४-३७.] व्रत और शील के अतीचार ३५३ है। आजकल नकली मोती, नकली घी आदि बहुत सी वस्तुएँ चल पड़ी हैं। इन्हें असली कह कर बेचना या असली में मिला कर बेचना प्रतिरूपकव्यवहार का उदाहरण है। ये अचौर्याणुव्रत के पाँच अतीचार हैं क्योंकि इनसे चौयकर्म को प्रोत्साहन मिलता है। जिनका विवाह करना अपने गृहत्थ कर्तव्य में सम्मिलित नहीं ब्रह्मचर्याणुव्रत के है उनका स्नेहवश विवाह करना परविवाहकरण - है। जिसका पति मौजूद है किन्तु जो पुंश्चली है अतीचार उसका (नियत काल तक स्वस्त्री मान कर) सेवन करना इत्वरिकापरिगृहीतागमन है। जो वेश्या है या जो अनाथ होती हुई पुंश्चली है उसका (नियत काल तक स्वस्त्री मान कर ) सेवन करना इत्वरिका अपरिग्रहीतागमन है। काम के अङ्ग योनि और लिङ्ग हैं इनके सिवा अन्य अङ्गों से क्रीड़ा करना अनंगक्रीड़ा है। ऐसा करना अस्वाभाविक और सृष्टि विरुद्ध होने से सवथा वज्य है। कामविषयक अतिशय परिणामों का होना, उसके सिवा अन्य कार्यों का नहीं रुचना कामतीव्राभिनिवेश है। वर्तमान काल में जो नाटक सिनेमा आदि में अतिशय आसक्ति देखी जाती है वह कामविषयक तीव्र अभिलाषा का ही परिणाम है। इससे ब्रह्मचर्य को गहरा धक्का लग कर जनता के स्वास्थ्य और सौन्दर्य की गहरी हानि हो रही है और उत्तरोत्तर असदाचार की वृद्धि में सहायता मिलती है। ऐसे बहुत ही कम लोग हैं जो शिक्षा की दृष्टि से सिनेमा देखने जाते हैं। या सिनेमा भी ऐसे बहुत ही कम रहते हैं जो शिक्षा की दृष्टि से दिखलाये जाते हैं। अधिकतर सिनेमाओं का प्रयोजन चित्त को विचलित करना रहता है। इससे जनता अन्धी होकर पतङ्गों की तरह उनके जाल में फसती रहती है। इससे देश की जो हानि हो रही है वह अवर्णनीय है। प्रत्येक सद्गृहस्थ का कर्तव्य है कि वह स्वयं को व अपने बाल-बच्चों को इस असत् प्रवृत्ति से रोके।
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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