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________________ ३५२ तत्त्वार्थसूत्र [७. २४-३७. दिया जाता है तो अनाचार है। झूठी गवाही देना या दूसरे का अपवाद करना यह सब भी मिथ्योपदेश ही है। सत्याणुव्रती को इसका भी त्याग करना चाहिये । गुप्त बात का प्रकट करना रहोऽभ्याख्यान है। जैसे किसी स्त्री पुरुष द्वारा एकान्त में किये गये आचरण विशेप का प्रकट कर देना रहोऽभ्याख्यान है । यद्यपि दूसरे ने कुछ नहीं कहा है तथापि अन्य किसी की प्रेरणा से 'उसने ऐसा कहा या किया है' इस प्रकार झूठा लेख करना कूटलेखक्रिया है। कोई धरोहर रख कर भूल गया तो उसकी इस भूल का लाभ उठा कर धरोहर के भूले हुये अंश को हजम करने के उद्देश्य से कहना कि हाँ जितनी धरोहर तुम बोल रहे हो उतनी ही रखी थी न्यासापहार है। चेष्टा आदि द्वारा दूसरे के अभिप्राय को जानकर ईर्ष्यावश उसका प्रकट कर देना साकारमन्त्रभेद है। ये सत्याणुव्रत के पाँच अतीचार हैं क्योंकि ऐसा करने से सत्यव्रत मलिन होता है। चोरी करने के लिये किसी को स्वयं प्रेरित करना, दूसरे से प्रेरणा अचौर्याणुव्रत के .. कराना या ऐसे कार्य में सम्मत रहना स्तेनप्रयोग है। अपनी प्रेरणा या सम्मति के बिना किसी के असा दाग चोरी करके लाई हई द्रव्य का ले लेना स्तेन आहृतादान है। राज्य में विप्लव होने पर होनाधिक मान से वस्तुओं का आदान प्रदान करना विरुद्धराज्यातिक्रम है। उदाहरणार्थ-युद्धकाल में या उसके बाद अब जो ब्लेक मार्केट चल रहा है यह सब विरुद्ध राज्यातिक्रम है। इसी प्रकार राज्य नियमों का उल्लंघन करके जो वस्तुओं का आदान-प्रदान किया जाता है या मुनाफा करके भय से मुनाफा आदि छिपाया जाता है वह भी विरुद्धराज्यातिक्रम है। मापने या तौलने के न्यूनाधिक वाँटों से देन लेन करना हीनाधिक मानोन्मान है। तथा असली के बदले नकली वस्तु चलाना या असली में नकली वस्तु मिलाकर उसका चलन चालू करना प्रतिरूपकव्यवहार
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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