SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 404
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४६ ७, २४-३७.] व्रत और शील के अतीचार परविवाहकरणेत्वरिकापरिगृहीतापरिगृहीतागमनानङ्गक्रीडाकामतीवाभिनिवेशाः ॥ २८ ॥ क्षेत्रवास्तुहिरण्यसुवर्णधनधान्यदासीदासकुप्यत्रमाणातिक्रमाः।। २९ ॥ ऊर्ध्वाधस्तिर्यग्व्यतिक्रमक्षेत्रवृद्धिस्मृत्यन्तराधानानि॥३०॥ आनयनप्रेष्यप्रयोगशब्दरूपानुपातपुद्गलक्षेपाः ॥३१॥ कन्दर्पकौत्कुच्यमौखर्यासमीक्ष्याधिकरणोपभोगपरिभोगानर्थक्यानि ॥३२॥ योगदुष्प्रणिधानानादरस्मृत्यनुपस्थानानि ॥ ३३ ॥ अप्रत्यवेक्षिताप्रमार्जितोत्सर्गादानसंस्तरोपक्रमणानादरस्मृत्यनुपस्थानानि ॥ ३४॥ सचित्तसम्बन्धसंमिश्राभिषवदुःपक्वाहाराः ।। ३५ ।। सचित्तनिक्षेपापिधानपरव्यपदेशमात्सर्यकालातिक्रमाः।३६। जीवितमरणाशंसामित्रानुरागसुखानुवन्धनिदानानि ॥३७॥ ब्रतों और शीलों में पाँच पाँच अतीचार होते हैं जो क्रम से इस प्रकार हैं____ बन्ध, वध, छेद, अतिभार का आरोपण और अन्नपान का निरोध ये अहिंसाणुव्रत के पाँच अतीचार हैं। मिथ्योपदेश, रहोभ्याख्यान, कूटलेखक्रिया, न्यासापहार और 'साकारमन्त्रभेद ये सत्याणुव्रत के पाँच अतीचार हैं। स्तनप्रयोग, स्तेन-आहृतादान, विरुद्धराज्यातिक्रम, हीनाधिकमानोन्मान और प्रतिरूपकव्यवहार ये अचौर्याणुव्रत के पाँच अतीचार हैं।
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy