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________________ ३५० तत्त्वार्थसूत्र [७. २४-३७. परविवाहकरण, इत्वरिकापरिगृहीतागमन, इत्वरिका अपरिगृहीतागमन,अनंगक्रीड़ा और कामतीब्राभिनिवेश ये ब्रह्मचर्याणुव्रत के पाँच अतीचार हैं। क्षेत्र और वास्तु के प्रमाण का अतिक्रम, हिरण्य और सुवर्ण के प्रमाण का अतिक्रम, धन और धान्य के प्रमाण का अतिक्रम, दासी और दास के प्रमाण का अतिक्रम तथा कुप्य के प्रमाण का अतिक्रम ये परिग्रहपरिमाणवत के पाँच अतीचार हैं। ' ऊर्ध्वव्यतिक्रम, अधोव्यतिक्रम, तिर्यग्व्यतिक्रम, क्षेत्रवृद्धि और स्मृत्यन्तराधान ये दिग्विरतिव्रत के पाँच अतीचार हैं। आनयन, प्रेष्यप्रयोग, शब्दानुपात, रूपानुपात और पुद्गलक्षेप ये देशविरतिव्रत के पाँच अतीचार हैं। ___ कन्दर्प, कौत्कुच्य, मौखर्य, असमीक्ष्याधिकरण और उपभोगपरिभोगानर्थक्य ये अनर्थदण्डविरतिव्रत के पाँच अतीचार हैं। कायदुष्प्रणिधान, वचनदुष्प्रणिधान, मनोदुष्प्रणिधान, अनादर और स्मृत्यनुपस्थान ये सामायिक व्रत के पाँच अतीचार हैं। अप्रत्यवेक्षित-अप्रमार्जित उत्सर्ग, अप्रत्यवेक्षित-अप्रमार्जित आदान, अप्रत्यवेक्षित-अप्रमार्जित संस्तरोपक्रमण, अनादर और स्मृत्यनुपस्थान ये प्रोषधोपवास व्रत के पाँच प्रतीचार हैं।। सचित्ताहार, सचित्तसम्बन्धाहार, सचित्तसंमिश्राहार, अभिषव आहार और दुष्पकाहार ये उपभोगपरिभोगपरिमाण व्रत के पाँच अतीचार हैं। सचित्त-निक्षेप, सचित्तापिधान, परव्यपदेश, मात्सर्य और कालातिक्रम ये अतिथिसंविभागबत के पाँच अतीचार हैं। जीविताशंसा, मरणाशंसा, मित्रानुराग, सुखानुबन्ध और निदान ये मारणान्तिक सल्लेखना के पाँच अतोचार हैं।
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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