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७. २०-२२.] अगारी व्रती का विशेष खुलासा ३४३. भी सेवन नहीं करता, क्योंकि इनके निमित्त से त्रस जीवों का घात होता है। इसी प्रकार वह केतकी के फूल और अदरख, आलू व मूली आदि का भी सेवन नहीं करता, क्योंकि वे अनन्तकाय होते हैं अर्थात् इनमें एक एक शरीर के आश्रय से अनन्तानन्त निगोदिया जीव निवास करते हैं। इसी प्रकार और भी अशुचि पदार्थ जैसे गोमूत्र
आदि उनका भी सेवन उसे नहीं करना चाहिये। वर्तमान काल में जो विदेशी दवायें होती हैं जिनके निर्माण का ठीक तरह से पता नहीं चलता और जिनमें अशुचि पदार्थों के रहने की सम्भावना रहती है या जो पेय हैं उनका सेवन करना भी इसके लिये निषिद्ध है। अपने द्वारा न्याय से कमाये गये द्रव्य में से संयम का उपकारी भोजन व दवाई आदि का भक्तिभावपूर्वक सुपात्र को देना अतिथिसंविभाग व्रत है। उत्तम, मध्यम और जघन्य के भेद से सुपात्र तीन प्रकार के हैं। उत्तम सुपात्र मुनि हैं, मध्यम सुपात्र व्रती गृहस्थ हैं और जघन्य सुपात्र अव्रती श्रावक हैं। यद्यपि वर्तमान काल में दान की बहुतसी परम्परायें प्रचलित हो रही हैं तथापि सुपात्र को श्रद्धापूर्वक आहार देने की परम्परा प्रायः शिथिलसी होती जा रही है। अब तो किसी भी गाँव में अव्रती श्रावक की बात जाने दीजिये व्रती श्रावक के आ जाने पर भी उसको आहार के लिये घर घर घूमना पड़ता है। उसमें भी बड़ी कठिनाई से कोई श्रावक आहार कराने के लिये उद्यत होता है। इसके दो कारण हैं, एक तो लोग त्याग-धर्म के महत्त्व को भूलते जा रहे हैं। दूसरे जो त्यागधर्म के सम्मुख होते हैं उनमें भी बहुत कुछ त्रुटियाँ प्रविष्ट हो चुकी हैं जिससे गृहस्थों की उनके प्रति श्रद्धा उत्पन्न नहीं होती। वस्तुतः इन दोनों में संशोधन की आवश्यकता है और समय रहते इस विषय पर ध्यान जाना चाहिये, अन्यथा इस परम्परा के शिथिल हो जाने से व्रती जनों की परम्परा ही समाप्त हो जाने की सम्भावना है। वास्तव में देखा जाय तो धर्मतत्त्व सदाचार में ही