SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 388
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७. १७.] परिग्रह का स्वरूप ३३३ भाई देखने में आते हैं जिनके शरीर पर लंगोटी मात्र परिग्रह रहता है। यदि इतने मात्र से उनका निर्वाह हो जाता है तो फिर जो अपने जीवन के ढांचे को ही बदल देना चाहता है उसका वस्त्र के बिना निर्वाह न हो यह कैसी विडम्बना है । सच तो यह है कि साधु के लिये वस्त्र की आवश्यकता का अनुभव करना अपने जीवन से खेल करने के . समान है। मानव प्राणी और सब कुछ करे पर ऐसा न करे जिससे उसके जीवन में विकार को प्रोत्साहन मिलता हो। पशु पक्षियों को ही देखिये । आखिर उनके भी तो शरीर है पर क्या उन्हें भोजन पानी के समान वस्त्र की आवश्यकताका अनुभव होता है ? कभी नहीं। इस तरह जब पशु पक्षियों का वस्त्र के बिना काम चल जाता है तो जिसने सकल परिग्रहका त्याग किया है उसका वस्त्र के बिना काम न चले यह महदाश्चर्य की बात है। यह सब हम किसी विकार भाव से प्रेरित होकर नहीं लिख रहे हैं। किन्तु जीवन की सही आलोचना है जो हमें ऐसा लिखने के लिये बाध्य करती है। हम समझते हैं कि इतने विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि साधु के लिये पात्र की तरह वस्त्रकी भी आवश्यकता नहीं है। इसके बाद भी यदि वस्त्र का आग्रह किया जाता है तब हम कहते हैं कि तो फिर अन्य परिग्रहने क्या विगाड़ा है। यदि वस्त्र के समान अन्य परिग्रह भी रहा आवे तो क्या हानि है। पर सच तो यह है कि बाह्य वस्तुका. स्पर्श मात्र ही हेय है। उससे जीवन में विकल्प आये बिना रहता नहीं। यद्यपि प्रारम्भ में साधु के पास पीछी कमण्डलु होते हैं पर कभी कभी वे भी जब विकल्प के कारण हो जाते हैं, अतएव आगे चल कर उनका रहना भी जब प्रशस्त नहीं माना गया है तब फिर वस्त्रके रखने की कथा करना ही व्यर्थ है। यही कारण है कि साधुके लिये वस्त्र त्यागका पूर्ण विधान किया गया है। इस प्रकार समीक्षा करके देखने पर मालूम पड़ता है कि साधु के लये शरीर रक्षार्थ और साधुत्व के निर्वाहार्थ जैसे आहार
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy