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________________ ३३० तत्त्वार्थसूत्र [७. १७. रक्षा के लिये इनका रखा जाना आवश्यक बतलाया है । पीछी के बिना भूमिका शोधन और सूक्ष्म जन्तुओंका वारण नहीं किया जा सकता है और कमण्डलु के बिना मल मूत्र के विसर्जन के बाद शुद्धि नहीं की जा सकती है, इसलिये जैसे शास्त्रज्ञान का साधन होनेसे स्वाध्यायके लिये उसका ग्रहण करना परिग्रह में सम्मिलित नहीं है वैसे ही पीछी और कमण्डलु संयम के पालने में सहायक होनेसे उपयोग के लिये उनका लेना भी परिग्रह में सम्मिलित नहीं है। तात्पर्य यह है कि साधु पीछी और कमण्डलु को स्वेच्छा से नहीं लेता है किन्तु संयम की रक्षा के लिये वे होते हैं इसलिये उन्हें रखना पड़ता है, इसलिये उनमें उसकी मूर्छा न होने से वे परिग्रह में सम्मिलित नहीं हैं। ____शंका--जैसे संयम को रक्षाके लिये पोछी और कमण्डलु माने गये हैं वैसे ही वस्त्र और पात्र आदि का रखा जाना भी आवश्यक है यदि ऐसा मान लिया जाय तो क्या हानि है ? ___समाधान-पोछी और कमण्डलु का होना जितना आवश्यक है उतना वस्त्र पात्र आदिका होना आवश्यक नहीं है क्यों कि पात्र और चीबर के नहीं होने पर भी बिना बाधा के साधु का जीवन यापन हो सकता है। साधु घर, स्त्री, पुत्र, कुटुम्बादिक का त्याग इस लिये करता है कि वह पूर्ण स्वावलम्बन पूर्वक निर्विकार भाव से अपना जीवन यापन कर सके क्यों कि उसने उस महान् व्रतकी दीक्षा ली है जिसका अन्य पदार्थों का संयोग रहते हुए निभ सकना कभी भी सम्भव नहीं है। जब कि वह कर्म और नोकर्म से पल्ला छुड़ाने के लिये प्रत्यक्ष युद्ध के मैदान में सफल योद्धा की भांति उतर आया है तब क्या उससे ऐसी क्रियाका होना सम्भव है जो इसे इनसे बांधे रहे। गृहस्थी में रहते हुए पूरी तरह से यह युद्ध इसलिये नहीं लड़ा जा सकता है क्यों कि वहां ममकार और अहंकार भावको प्रोत्साहन मिलता रहता है
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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