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________________ ३१० तत्त्वार्थसूत्र [७. ३-८. स्त्रीरागकथाश्रवणतन्मनोहराङ्गनिरीक्षणपूर्वरतानुस्मरणवृष्ये - ष्टरसस्वशरीरसंस्कारत्यागाः पञ्च ॥ ७॥ मनोज्ञामनोजेन्द्रियविषयरागद्वेषवर्जनानि पश्च ॥ ८॥ उन व्रतों को स्थिर करने के लिये प्रत्येक व्रत की पाँच पाँच भावनायें हैं। वचनगुप्ति, मनोगुप्ति, ईर्यासमिति, आदाननिक्षेपणसमिति और आलोकितपानभोजन ये अहिंसा व्रत की पाँच भावनायें हैं। क्रोधप्रत्याख्यान, लोभप्रत्याख्यान, भीरुत्वप्रत्याख्यान, हास्यप्रत्याख्यान और अनुवीचिभाषण ये सत्यव्रत की पाँच भावनायें हैं। शून्यागारावास, विमोचित्तावास, परोपरोधाकरण, भैक्षशुद्धि और सधर्माविसंवाद ये अचौर्यव्रत की पाँच भावनायें हैं। ___ खीरागकथाश्रवणत्याग, स्त्रीमनोहराङ्गनिरीक्षणत्याग, पूर्वरतानुस्मरणत्याग, वृष्येष्टरसत्याग और स्वशरीरसंस्कारत्याग ये ब्रह्मचर्य व्रत की पाँच भावनायें हैं। इन्द्रियों के मनोज्ञ विषयों में राग नहीं करना और अमनोज्ञ विषयों में द्वेष नहीं करना ये अपरिग्रहव्रत की पाँच भावनायें हैं। स्वीकृत व्रतों का पालना बिना परिकर के सम्भव नहीं। ब्रतोन्मुख या व्रतारूढ़ हुए प्रत्येक प्राणी को व्यावहारिक जीवन की उन प्रवृत्तियों से बचना होगा जो हिंसा आदि अव्रतों की पोषक हों और उन प्रवृत्तियों की ओर निरन्तर ध्यान देना होगा जिनसे अहिंसा आदि व्रतों की पुष्टि होती हो; प्रस्तुत प्रकरण में ऐसी प्रवृत्तियों का ही सदा ध्यान रखना भावना बतलाया है। इन भावनाओं को जीवन में भले प्रकार से उतार लेने पर अहिंसादि व्रतों का अच्छी तरह से पालन होता है। प्रत्येक व्रत की ये भावनायें पाँच पाँच हैं जिनका नाम निर्देश स्वयं सूत्रकार ने किया है; खुलासा निप्रकार है
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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