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व्रत का स्वरूप शङ्का-आजकल रात्रि में दूध और पानी लेने की तो पूरी छूट है ही, साथ ही अन्न के सिवा मेवा-मिष्टान्न के लेने में भी आपत्ति नहीं की जाती। इसमें तिल, सिंघाड़ा और राजगिर जैसे पदार्थ भी आ जाते हैं । रात्रि में गेहूँ आदि धान्य के बने हुए पदार्थों के न लेने पर भी अन्य प्रकार से रात्रि का भोजन तो हो ही जाता है, फिर रात्रि-भोजन त्याग व्रत की लीक पीटने में क्या राम है ? जब रात्रि में भोजन करने के लिये इतनी सुविधायें मिल गई तब अन्न से बने पदार्थों के भोजन की सुविधा दे देने में आपत्ति ही क्या है ?
समाधान-रात्रि में किसी भी प्रकार का भोजन नहीं करना चाहिये, यह मूल व्रत है। इस दृष्टि से विचार करने पर मेवा-मिष्टान्न की बात तो जाने दीजिये, रात्रि में पानी भी नहीं लिया जा सकता; तथापि कुछ पढ़े-लिखे और पैसेवाले लोगों ने इतनी सुविधायें प्राप्त कर ली तो इसका यह अर्थ नहीं कि अन्न की भी छूट दे दी जाय। रात्रिभोजनविरमण व्रत का जो भी हिस्सा शेष है उसकी रक्षा होनी ही चाहिये, उसीसे लोगों का ध्यान पुनः बदल सकता है और वे पूरी तरह से इस व्रत के पालने के लिये कटिबद्ध हो सकते हैं।
शङ्का-आखिर इस व्रत का इतना आग्रह क्यों ?
समाधान-जिन जिन बातों से अहिंसा की रक्षा हो उन तमाम बातों पर बढ़ रहना यह प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है। सच पूछा जाय तो जैनी अहिंसा के प्रतीक हैं। और तमाम धर्मों ने या उनके अनुयायियों ने हिंसा और अहिंसा के भेद को भुला दिया है। बौद्धधर्म जो श्रमण धर्म का अङ्ग माना जाता है उसके अनुयायी भी अब मांस
आदि का भक्षण करना अनुचित नहीं मानते। एक जैनी ही ऐसे हैं जिन्होंने विकृत या अविकृत हर हालत में अहिंसा की रक्षा की है। यतः रात्रि में भोजन करने से हिंसा को प्रोत्साहन मिलता है, अतः रात्रि में भोजन करने का निषेध किया जाता है।
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