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________________ ३०२ तत्त्वार्थसूत्र [७. १. प्रकाश उपलब्ध हो गये हैं जिससे दिन के समान देखा जा सकता है, तथा भोजन के स्थान में त्रस जीवों का अधिक संचार न हो यह व्यवस्था भी की जा सकती है; ऐसी अवस्था में यदि रात्रि में भोजन किया जाय तो क्या हानि है ? समाधान-यह व्यवस्था यदि किसी व्यक्ति को उपलब्ध भी हो गई तो भी रात्रि में भोजन करने का समर्थन नहीं किया जा सकता। इसके दो कारण हैं, प्रथम तो यह कि कोई व्यवस्था एक व्यक्ति की दृष्टि से नहीं की जाती है। यदि एक व्यक्ति को सुविधायें प्राप्त हैं और उनका उपयोग करने की उसे अनुज्ञा भी मान ली जाय तो अन्य व्यक्ति उन सुविधाओं के अभाव में भी उससे अनुचित लाभ उठाने की सोच सकते हैं और इस प्रकार व्रत में शिथिलता आकर जीवन में उसका स्थान ही नहीं रहता। दूसरे कोई साधारण नियम किसी खास देश या खास काल को ध्यान में रख कर नहीं बनाये जाते हैं। क्या जिस व्यक्ति को उक्त सुविधायें प्राप्त हैं और इसलिये जिसने रात्रि में भोजन करने की आदत डाल ली है कालान्तर में या घर छोड़कर अन्यत्र जाने पर भी उसकी वे सुविधायें वैसी ही बनी रहेंगी; ऐसा कहा जा सकता है, यदि नहीं तो फिर जहाँ उसे वे सुविधायें न रहेंगी वहाँ अपनी आदत के विरुद्ध वह दिन में भोजन कैसे करने लगेगा। अर्थात् नहीं कर सकेगा, इसलिये राजमार्ग यही है कि अहिंसा व्रत की रक्षा के लिये रात्रि में भोजन न किया जाय । ___ यदि थोड़ी देर को यह भी मान लिया जाय कि बिजली आदि का प्रकाश सर्वदा सबको उपलब्ध हो सकेगा तो भी रात्रि भोजन का समर्थन नहीं किया जा सकता, क्योंकि सूर्य की किरणों में जो गुण हैं वे बिजली आदि के प्रकाश में नहीं पाये जाते। सच तो यह है कि रात्रि का उपयोग विश्राम के लिये करना चाहिये, अन्य कोई भी काम रात्रि में करना उचित नहीं है।
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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