SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 356
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३०१ ७. १. ] व्रत का स्वरूप यह निवृत्ति असत्प्रवृत्तियों की बतलाई है। हिंसा, असत्य, चोरी, मैथुन और परिग्रह ये असत् प्रवृत्तियाँ हैं जो प्राणीमात्र के जीवन में ज्ञात और अज्ञातभाव से घर किये हुए हैं, इसलिये इनके त्याग का उपदेश देने से व्रत में सत्प्रवृत्तियों का स्वीकार अपने आप फलित हो जाता है । अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और परिग्रहत्याग ये सत्प्रवृत्तियाँ हैं जो इनके विपरीत हिंसादिक के त्याग करने से प्राप्त होती हैं। वास्तव में देखा जाय तो निवृत्ति और प्रवृत्ति ये एक ही व्रत के दो पर्यायनाम हैं जो दृष्टिभेद से प्राप्त हुए हैं। जब कोई प्राणी अपने जीवन में हिंसा नहीं करने का निर्णय करता है तो उसका फलित अर्थ होता है कि उसने अपने जीवन में अहिंसा के पालने का निश्चय किया है । इसी प्रकार जब कोई प्राणी अपने जीवन में अहिंसा के पालने का निश्चय करता है तो उसका, फलित अर्थ होता है कि उसने अपने जीवन में हिंसा के त्याग देने का निश्चय किया है, इसलिये यद्यपि सूत्रकार ने असत्प्रवृत्तियों का त्याग व्रत बतलाया है तथापि उससे सत्प्रवृत्तियों का ग्रहण स्वयमेव हो जाता है। शंका-रात्रि भोजन विरमण नाम का छठा व्रत है उसका सूत्रकार ने निर्देश क्यों नहीं किया ? समाधान-आगे चलकर अहिंसाव्रत की पाँच भावनायें बतलाई गई हैं उनमें एक आलोकितपानभोजन नामक भावना भी है। उसका अर्थ है देख कर खाना पीना। रात्रि में प्रकाश की कमी रहने के कारण और त्रस जीवों का संचार अधिक होने के कारण देख कर खाना पीना नहीं बन सकता, अतः जीवन में आलोकितपानभोजन इस भावना के स्वीकार कर लेने से ही रात्रिभोजन का त्याग हो जाता है, इसी से सूत्रकार ने रात्रिभोजनविरमण नामक व्रत का पृथक से निर्देश नहीं किया ? शंका-वर्तमान काल में बिजली और गैस आदि के इतने तेज
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy