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________________ तत्त्वार्थसूत्र [७. १. शङ्का-रात्रि में भोजन न करने के और क्या लाभ हैं ? समाधान-रात्रि में भोजन न करने से आरोग्य की वृद्धि होती हैं, जठर को विश्राम मिलता है जिससे उसकी कार्यक्षमता बढ़ जाती है, भले प्रकार निद्रा आती है और ब्रह्मचर्य के पालन करने में सहायता मिलती है जो प्राणीमात्र का तेजोमय जीवन है। इन सब लाभों को ध्यान में रखकर रात्रि में भोजन का न करना ही उचित है। शङ्का - उक्त कारणों से यह तो समझ में आया कि रात्रि में भोजन न करना चाहिये, तथापि रात्रि में भोजन नहीं करना यह उचित होते हुए भी इसे राष्ट्र ने या बहुसंख्यक लोगों ने तो माना नहीं है। इसे तो बहुत ही थोड़े लोग पालते हैं, इसलिये ऐसे प्रसङ्गों पर, जहाँ बहुसंख्यक अन्य लोग रहते हैं और रात्रि को भोजन न करने की प्रतिज्ञावाले बहुत ही अल्पमात्रा में होते हैं, इस व्रत के पालने में बहुत कठिनाई जाती है । उदाहरणार्थ-कारखानों में, जहाँ समय से काम होता है और छुट्टी भी समय से ही मिलती है, मजदूर या क्लक इस व्रत को कैसे पाल सकते हैं ? यदि यह सोचा जाता है कि रात्रिभोजनविरमण ब्रत का जीवन में कठोरता से पालन हो तो इस समस्या को सुलझाना ही होगा। यह आज की समस्या है जिस पर ध्यान देना आवश्यक है। ___ . समाधान-इस समस्या के महत्त्व को हर कोई जानता है। यह भी मालूम है कि इस कारण से या ऐसे ही अन्य कारणों से इस व्रत में शिथिलता आई है । पर यदि प्रत्येक व्यक्ति चाहे तो इसका भी हल निकल सकता है । सर्वप्रथम प्रत्येक को यह सोचने की आवश्यकता है कि धर्म का मुख्य प्रयोजन आत्मशुद्धि है। और आत्मशुद्धि बिना स्वावलम्बन के हो नहीं सकती । यह जीवन को सबसे बड़ी कमजोरी है कि यह जीव अपने से पृथग्भूत पदार्थों का आलम्बन लेता है और उनके अभाव में दुखी होता है। वास्तव में देखा जाय तो गृहस्थ धर्म और यति धर्म की सार्थकता इसी में है कि ऐसी कमजोरी को जो कि
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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