SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 322
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५. ३९-४०.] काल द्रव्य की स्वीकारता और उसका कार्य २६७ प्रत्येक द्रव्य का प्रति समय अपनी विविध पर्यायों के द्वारा उत्पाद व्यय होता है। यह उत्पाद व्यय अकारण तो हो नहीं सकता। जैसे जीव और पुद्गल की गति में धर्म द्रव्य साधारण कारण है और गतिपूर्वक होनेवाली स्थिति में अधर्म द्रव्य साधारण कारण है, वैसे ही प्रत्येक द्रव्य की प्रति समय जो नई नई पर्यायें उत्पन्न होती हैं वे अकारण नहीं हो सकती। उनका भी कोई साधारण कारण होना चाहिये । यहाँ जो भी साधारण कारण रूप से स्वीकार किया गया है वही काल द्रव्य है। इसमें बर्तनाहेतुत्व आदि असाधारण गुण हैं और अमृतत्व, अचेतनत्व, सूक्ष्मत्व आदि साधारण गुण हैं। तथा इनकी उत्पाद व्ययरूप प्रति समय होनेवाली पर्याय है। इसलिये द्रव्य के दोनों लक्षण घटित होने से यह भी द्रव्य है। काल द्रव्य परमाणु के समान एक प्रदेशी है। वह द्वयणुक आदि के समान संख्यात प्रदेशी, धमे द्रव्य के समान असंख्यात प्रदेशी और आकाश के समान अनन्त प्रदेशी नहीं है। • काल द्रव्य प्रति समय होनेवाली पर्याय का साधारण कारण है इसलिये उसे अणुरूप स्वीकार किया गया है। ऐसे कालाणु असंख्यात हैं जो लोकाकाश के एक एक प्रदेश पर स्थित हैं। ___यद्यपि दिन रात का भेद सूर्य आदि के निमित्त से होता है इसलिये ऐसी प्रतीति होती है कि कालिक परिवर्तन का मुख्य कारण पुद्गल है। पर जहाँ सूर्यादि नहीं हैं कालिक भेद तो वहाँ भी होता है। वह सर्वथा अकस्मात् नहीं हो सकता इसलिये उसके मुख्य कारण रूप से काल द्रव्य स्वीकार किया गया है। जैसे वर्तमान समय है ऐसे ही अतीत अनन्त समय हो गये हैं और आगे अनन्त समय होंगे। समय उसकी एक पर्याय है। अतीत
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy