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________________ २६६ . तत्त्वार्थसूत्र [५. ३६-४०. द्रव्य छः हैं-जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल । इनमें साधारण और असाधारण दोनों प्रकार के अनन्त गुण और उनकी विविध प्रकार की पर्यायें तादात्म्य रूप से स्थित हैं। साधारण गुण वे कहलाते हैं जो एकाधिक द्रव्यों में या सब द्रव्यों में पाये जाते हैं। अस्तित्व, वत्तुत्व, प्रमेयत्व आदि सब द्रव्यों में पाये जानेवाले साधारण गुण हैं और अमूर्तत्व यह पुद्गल के सिवा शेष द्रव्यों में पाया जानेवाला साधारण गुण है। असाधारण गुण वे कहलाते हैं जो प्रत्येक द्रव्य की अपनी विशेषता रखते हैं। जीव में चेतना आदि, पुद्गल में रूप आदि, धर्म में गतिहेतुत्व आदि, अधर्म में स्थितिहेतुत्व आदि, आकाश में अवगाहनत्व आदि और काल में वर्तनहेतुत्व आदि उस उस द्रव्य के विशेष गुण हैं। ये प्रत्येक द्रव्य की अनुजीवी शक्तियाँ हैं। इनसे ही उस उस द्रव्य की स्वतन्त्र सत्ता जानी जाती है। जिस द्रव्य के जितने गुण हैं उतनी ही प्रति समय उनकी पर्यायें होती हैं। पर्यायें बदलती रहती हैं। द्रव्य को गुण पर्यायवाला कहने का हेतु यही है ॥ ३८॥ काल द्रव्य की स्वीकारता और उसका कार्य* कालश्च ॥ ३९ ॥ सोऽनन्तसमयः ॥ ४०॥ काल भी द्रव्य है। वह अनन्त समय ( पर्याय ) वाला है। पहले काल के उपकारों पर प्रकाश डाल आये हैं परन्तु वह भी द्रव्य है ऐसा विधान नहीं किया है इसलिये यहाँ उसे द्रव्य रूप से स्वीकार किया गया है। - * श्वेताम्बर परम्परा में 'कालश्चेत्येके' ऐसा पाठ है। तदनुसार वे काल को एकमत से द्रव्य स्वीकार नहीं करते ।
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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