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________________ तत्त्वार्थसूत्र [५. ४१. अनागत और वर्तमान सब मिला कर वे अनन्त होती हैं इसलिये काल द्रव्य अनन्त समयबाला कहा गया है। __मन्द गति से एक पुद्गल परमाणु को लोकाकाश के एक प्रदेश पर से दूसरे प्रदेश पर जाने में जितना काल लगता है उसका नाम एक समय है। ऐसे अनन्त समयवाला काल द्रव्य है यह उक्त कथन का तात्पर्य है ॥ ३६-४०॥ गुण का स्वरूप-- द्रव्याश्रया निर्गुणा गुणाः ॥ ४१ ॥ जो सदा द्रव्य में रहनेवाले हैं और स्वयं गुण रहित हैं वे गुण हैं। पहले द्रव्य के लक्षण का निर्देश करते समय गुण का कथन किया था, इसलिये यहाँ उसका स्वरूप बतलाया गया है। __ शंका-पर्याय कार्य है और गुण कारण है । गुण और पर्याय दोनों ही द्रव्य में पाये जाते हैं और दोनों ही निर्गुण हैं इसलिये 'द्रव्याश्रया निर्गुणाः' यह केवल गुण का लक्षण नहीं ठहरता, क्योंकि यह पर्याय में भी पाया जाता है। समाधान माना कि यह.लक्षण पर्याय में भी घटित होता है पर इसमें 'सदा' विशेषण लगा देने से पर्याय की निवृत्ति हो जाती है क्योंकि पर्याय उत्पाद विनाशशील है। वे गुणों के समान सदा द्रव्य में नहीं रहतीं पर गुण नित्य होने से सदा द्रव्य में रहते हैं। गुण शक्तिविशेष का नाम है। उसमें अन्य शक्ति का वास नहीं इसलिये उसे निर्गुण कहा है। ऐसे गुण प्रत्येक द्रव्य में अनन्त होते हैं॥४१॥
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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