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________________ २३८ तत्त्वार्थसूत्र [५. २६-२७. आधुनिक विज्ञान जगत् में जिन पुद्गल स्कन्धों का विद्युदणु ( Electron ) उद्युदणु ( Positron ) और उद्युत्कण ( Proton ) रूप से उल्लेख किया जाता है. उनका अन्तर्भाव भी इसी भेद में किया जा सकता है, क्यों ये स्थूलस्थूल और स्थूल स्कन्ध तो हैं ही नहीं। साथ ही ये किसी इन्द्रिय के विपय भी नहीं, पर हैं ये पुद्गल हो, अतः ये सूक्ष्म इस भेद में ही आते हैं। (६) सूक्ष्मसूक्ष्म-पुद्गल होकर भी जो स्कन्ध अवस्था से रहित हैं वे सूक्ष्मसूक्ष्म पुद्गल हैं । जैसे पुद्गल परमाणु । नियमसार में ये छहों भेद स्कन्ध के बतलाये हैं। इस हिसाब से विचार करने पर जो स्कन्ध कर्मवर्गणाओं से भी सूक्ष्म होते हैं उनका अन्तर्भाव सूक्ष्मसूक्ष्म भेद में होता है। जैसे द्वथणुक आदि । इसके सिवा पुद्गलों का अन्य प्रकार से भी भेद किया जाता है। आगम में ऐसे भेद २३ बतलाये हैं। यथा-अणुवर्गणा, संख्याताणुवर्गणा, असंख्याताणुवर्गणा, अनन्ताणुवर्गणा, आहार वर्गणा, अग्राह्य वर्गणा, तैजस वर्गणा, अग्राह्यवर्गणा, भापा वर्गणा, अग्राह्यवर्गणा, मनोवर्गणा, अग्राह्यवर्गणा, कार्मणवर्गणा, ध्रुववर्गणा, सान्तरनिरन्तरवर्गणा, शून्यवर्गणा, प्रत्येकशरीरवर्गणा, ध्रुवशून्यवर्गणा, बादरनिगोदवर्गणा, शून्यवर्गणा, सूक्ष्मनिगोदवर्गणा, नभोवर्गणा, और महास्कन्धवर्गणा। __ प्रथम भेद के सिवा ये सब भेद स्कन्ध के हैं। जिनमें शून्य वर्गणा केवल मध्यके अन्तरको दिखानेवाली हैं ॥२५॥ क्रम से स्कन्ध और अणु की उत्पत्ति के कारणभेदसङ्घातेभ्य उत्पद्यन्ते ।। २६ ।। भेदादणुः ॥ २७॥ भेद से, संघात से और भेद, संघात दोनों से स्कन्ध उत्पन्न होते हैं।
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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