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________________ २३६ तत्त्वार्थसूत्र [५. २५. . इससे स्पष्ट है कि जैन दार्शनिकों का शब्द आदि को पुद्गल की पर्याय मानना युक्तिसंगत, तथ्यपूर्ण व विज्ञानसंगत है ॥२४॥ पुद्गलों के भेदअणवः स्कन्धाश्च ॥ २५ ॥ पुद्गल अणु और स्कन्धरूप हैं। पुद्गलों में संयुक्त और वियुक्त होने की क्षमता स्पष्ट दिखाई देती है, इसी से वह अणु और स्कन्ध इन दो भागों में बटा हुआ है। कितने ही प्रकार के पुद्गल क्यों न हों वे सब इन दो भागों में समा जाते हैं। जो पुद्गल द्रव्य अति सूक्ष्म है, जिसका भेद नहीं हो सकता, इसलिये जिसका आदि मध्य और अन्त वह आप ही है, जो किसी दो स्पर्श, एक रस, एक गन्ध और एक वर्ण से युक्त है वह परमाणु है। यद्यपि पुद्गल स्कन्ध में स्निग्ध रूक्ष में से एक, शीत उष्ण में से एक, मृदु कठोर में से एक और लघु गुरु में से एक ये चार स्पर्श होते हैं। किन्तु परमाणु के अतिसूक्ष्म होने के कारण उसमें मृदु, कठोर, लघु और गुरु इन चार स्पर्शों का प्रश्न ही नहीं उठता इसलिये उसमें केवल दो स्पर्श माने गये हैं। इससे अन्य द्वयणुक आदि स्कन्ध बनते हैं इसलिये यह उनका कारण है कार्य नहीं। यद्यपि द्वथणुक आदि स्कन्धों का भेद होने से परमाणु को उत्पत्ति देखी जाती है इसलिये यह भी कथंचित् कार्य ठहरता है, तथापि परमाणु यह पुद्गल की स्वभाविक दशा है, इसलिये वस्तुतः यह किसी का कार्य नहीं है। यह इतना सूक्ष्म है जिससे इसे इन्द्रियों से नहीं जान सकते, तथापि कार्य द्वारा उसका अनुमान किया जा सकता है। तथा जो दो या दो से अधिक परमाणुओं के संश्लेष से बनता है वह स्कन्ध है। इतनी विशेषता है कि द्वयणुक तो परमाणुओं के संश्लेष से ही बनता है किन्तु ज्यणुक आदि स्कन्ध परमाणुओं के संश्लेष से
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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